डॉ सुधा गुप्ता
1
वे दो हिरना आँखें
मन बीच बसी है
ज्यों ओस -भरी पाँखें ।
2
जल में पुतली तिरती
नील कमल पर ज्यों
शबनम डबडब करती ।
3
अब आँसू सूख चले
रेत -भरी आँखों
सपना कोई न पले ।
4
जाना था तो जाते
लौट न पाएँगे
इतना तो कह जाते ।
5
सब दिन यूँ ही बीते
बाती से बिछुड़े
हैं दीप पड़े रीते ।
6
अब नींद नहीं आती
रातें रस भीनी
कोरी आँखों जाती ।
7
जब चाहो तब मिलना
पर यह वादा हो
फिर सितम नहीं करना ।
8
जब पाँव चुभा काँटा
छोड़ गया पथ में
दर्द न तूने बाँटा ।
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