सुदर्शन
रत्नाकर
आहट हुई
आता ही होगा कोई
शायद वही
कलियाँ मुस्कराईं
घूँघट
खोले
रंगों की छटा छाई
धरा नहाई
आसमान निखरा
सरसों खिली
सुगंधित हवाएँ
करतीं मस्त
छूट गया आलस्य
विदा हो गईं
ठिठुरन की रातें
लाईं सौग़ातें
भँवरों की गुंजार
कुहू की कू कू
मन को है सुहाई
वसंत ॠतु
आई
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7 टिप्पणियां:
धरा नहाई
आसमान निखरा
सरसों खिली
सुगंधित हवाएँ
करतीं मस्त
sunder chitan
rachana
वसंत ऋतु के रूप वैभव को चित्रित करती सुन्दर रचना| सुदर्शन जी को बधाई|
क्या बात है ...
बहुत सुंदर सुदर्शन रत्नाकर .....!!
स्वागत है बसंत ....
बहुत खूबसूरत! प्राकृतिक छटा बिखेरता चोका !
~सादर!!!
नैसर्गिक छटा का वर्णन करती सुन्दर रचना। सुदर्शन जी बधाई।
सुन्दर वसंत ऋतु वर्णन प्रस्तुत करती मोहक रचना ...बहुत बधाई !
बहुत ही सुन्दर...बसन्त कि छटा निखर गई...सादर बधाई !!
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