कृष्णा
वर्मा
1
कोमल काया
तू काँटों में अकेला
है अलबेला
आपदाओं से घिरा
जाने जीने की कला।
गुलाब पूछे,
अंग-संग काटों से-
‘क्यों सदा साथ’
‘तू नाज़ुक बदन
हम पहरेदार।’
3
काँटे ही काँटे
तो भी सुगन्ध बाँटे
पुष्प गुलाब
दुश्वारियाँ सहके
महके दिन-रात।
4
जीने की तुम
सीखो कला जनाब
हँस के जिओ
कीचड़ में कुमुद,
ज्यों काँटों में गुलाब।
5
होंठों पे हँसी,
रहे चेहरा खिला,
न कोई गिला,
शूलों संग पलता
तन कोमल तेरा।
6
न तोड़ो हमें
रहने दो काँटों में
यारी हमें प्यारी
इनकी बदौलत
लम्बी उम्र हमारी।
-0-
4 टिप्पणियां:
सभी ताँका बहुत सुन्दर ...
जीने की तुम
सीखो कला जनाब
हँस के जिओ
कीचड़ में कुमुद,
ज्यों काँटों में गुलाब।...बहुत प्यारे भाव लिए बहुत ही सुन्दर लगा |
बधाई कृष्णा जी !
सभी ताँका बहुत खूबसूरत व अर्थपूर्ण ! बधाई कृष्णा वर्मा जी!:-) एक मेरी तरफ से भी...
~हैं रखवाले,
कोमल गुलाब के..
नुकीले काँटे..
महफूज़ इन्हीं से
दुनिया गुलाबों की...~
~सादर!!!
आपका ताँका बहुत मन भाया अनीता जी बहुत-२ धन्यवाद।
कोमल काया
तू काँटों में अकेला
है अलबेला
आपदाओं से घिरा
जाने जीने की कला।
Bahut sundar abhivyakti...
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