डॉ
उर्मिला अग्रवाल
1-आ
मिला चाँद
चाँद गया
है
मावस से
मिलने
साथ ले
गया
बारात
सितारों की
ध्रुव
तारे को
है टाँका
पगड़ी में
कुर्ता
पहना
झिलमिल
करता
सजा रही
है
सेहरे की
लडि़याँ
रजनीगंधा
सुरभित
है सब
धरा
आसमां
अमावस
रात को
आ मिला
चाँद
जिसको
जीवन में
कोई न
चाहे
उसके
आँचल में
आ छिप
गया चाँद।
-0-
2-
अकेलापन
बीमार
हूँ मैं
पर पास न
कोई
अकेलापन
धारण
करता है
कितने
रूप
ये मैंने
आज जाना
कविताओं
में
रोमानी
लगता है
तन्हाई शब्द
पर हकीकत
में
होता है
यह
कितना
भयंकर
इसकी
पीड़ा
कोई
भुक्त–भोगी ही
जान सकता
विचलित
करती
आहें–कराहें
तोड़–तोड़
डालती
यह
तन्हाई
छेद–छेद
डालती
सोचती है
क्यों
छोड़ के
चले जाते
वृद्धावस्था
में
सब अपने
हमें
पता नहीं
क्यों
कलेजे के
टुकड़े
बेटे–बेटियाँ
भूले से
न पूछते
कि माँ
कैसी हो
काँपते
देखकर
ये बूढ़े
हाथ
वे मुँह
फेर लेते
वितृष्णा
होती
झुर्री
भरे हाथों से
उन
बच्चों को
जिन्हें
सहलाया था
जाग–जाग
के
रात और
दिन इन
ममतालु
हाथों ने।
-0-
4 टिप्पणियां:
कविताओं में
रोमानी लगता है
तन्हाई शब्द
पर हकीकत में
होता है यह
कितना भयंकर
इसकी पीड़ा
कोई भुक्त–भोगी ही
जान सकता
बहुत सच...बधाई...|
जीवन का कटु सत्य कहती पंक्तियाँ ..मन को छू गईं !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
जीवन की वास्तविकता व्यक्त करता सुन्दर चोका।
उर्मिला जी बहुत बधाई।
कटु सत्य कहती...मार्मिक अभिव्यक्ति !!
उर्मिला अग्रवाल जी को बधाई !!
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