डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
उड़ो परिंदे !
पा लो ऊँचे शिखर
छू लो चाँद -सितारे,
अर्ज़ हमारी-
इतना याद रहे
बस मर्याद रहे !
2
जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
रो दूँगी या गाऊँगी ,
तुम्हीं कहो न
बिन रस ,गागर
कैसे छलकाऊँगी ?
3
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह !
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5 टिप्पणियां:
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह !
bahut sunder ...!!
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
aगीत आशा के ही गा
तू भरना न आह !
बहुत सुन्दर सेदोका। ज्योत्स्ना जी बधाई।
आपकी प्रेरणास्पद उपस्थिति के लिए ह्रदय से आभार ...हरकीरत जी एवं Krishna Verma ji
सुन्दर सेदोका के लिए बहुत बधाई...|
प्रियंका
बहुत आभार प्रियंका जी !
सादर
ज्योत्स्ना
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