डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
सुरभित- सी
पवन ,ले
अनंग
धरा पीत वसना
हे ऋतुराज !
कुहू ,पिक
पुकारे -
स्वागत है तुम्हारा !
2
चंचल हवा
धीरे से पत्तियों से
जाने क्या कह जाएँ ,
झूम ही उठें
ये शांत तरुवर
लजा गईं लताएँ !
3
ओह नियंता !
नियमों में बँधे हैं
सतत तुम्हारे ही
गतिमान हैं
धरा ,चाँद व
तारे
ये प्रकाशमान
हैं !
4
समय-चक्र
अनवरत चला
प्राप्य सभी को मिला,
सुख औ' दुःख
क्रम टाला न जाए
सहना ,जो भी आए ।
2 टिप्पणियां:
चारों सेदोका बेहद खूबसूरत और अर्थवान ! आपको हार्दिक बधाई ! - सुभाष लखेड़ा
Sabdo ka tana bana bana apna jeevan suhanaa ...aur ye basant prakat karti jeevan ki susma.......aapko hardik badhai......bahut achchi rachna
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