शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

थामें पतवारें


डॉ सरस्वती माथुर
1
बहती धारा कलकल
थामें पतवारें
तू दूर कहीं अब चल
2
यादों के फूल खिले
मन की राहों पर
हम उनके संग चले
3
यादों की हवा चली
मन की गलियों में
उनकी ही ज्योति जली
-0-

3 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहती धारा कलकल
थामें पतवारें
तू दूर कहीं अब चल ।

bahut sunder ban pdaa hai ye mahiyaa ....

Krishna Verma ने कहा…

बहती धारा कलकल
थामें पतवारें
तू दूर कहीं अब चल ।
बहुत सुन्दर माहिया। सरस्वती जी बधाई।

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर मधुर माहिया ..बहुत बधाई सरस्वती जी !