बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

753



मौसम
1-शशि पाधा
1
कैसा घोटाला है
किरणें बेरंगी
नभ काला काला है ।
2
बादल के दोने में
दुबका बैठा है
सूरज उस कोने में ।
3
दिन रीते- रीते हैं
पीली धूप बिना
दिन फीके-फीके हैं ।
4
ये धरती पगलाई
घर घर ढूँढ रही
पहली -सी तरुणाई।
5
कैसा अंधेरा है
अम्बर गलियों में
किस ग्रह का डेरा है ।
7
पछुआ जब झूल गई
घर के रस्ते को
पुरवाई भूल गई ।
8
कैसा कुहराम मचा
धूप सहेली बिन
सर्दी का ब्याह रचा ।
9
गहरी धुँधलाहट में
पंछी काँप रहे
कितनी झुँझलाहट में ।
10
कुछ कम तैयारी थी
मौसम की बाजी
सूरज ने हारी थी ।
-0-
2-डॉ. सरस्वती माथुर
1
बासंती मन बूटे
 लागे ना है मन
 दर्द बँधें जो खूँटे ।
-0-

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

752



1-अनिता मण्डा
1
मीठे- से गीत लिखें।
लहरें नदिया की
कितना संगीत लिखें।
2
नस-नस में घुल जाता ।
दर्द का मुहब्बत का
किस्मत से मिल पाता ।
3
जीवन में नूर भरा।
तेरे होने से
रहता मन बाग़ हरा।
4
फागुन मन भावन है।
रंगों की वर्षा
करती मन पावन है।
5
होली के रंग खिले।
साथी बचपन के
रंगों के संग खिले।
6
यह खेल निराला है।
तन पर रंग चढ़े
मन क्यों फिर काला है।
-0-
2- सुनीता काम्बोज
1
पाती लिख  भेजी है
मन की हर धड़कन
हर बार  सहेजी है
2
कुछ बातें लिखनी हैं
दिन बैचेन लिखूँ
नम रातें लिखनी हैं
3
कण कण में तू बसता
तुझ तक आने का
मैं ढूँढ रही रस्ता ।
4
गुलदस्ता टूट गया
मेरे सपनों का
घर हँसता टूट गया ।
5
रण बीच खड़ा रथ है
अर्जुन डोल गए
मुश्किल जीवन -पथ है ।
6
गुरु पथ ना दिखलाते
घोर अँधेरों में
हम कैसे चल पाते
7
कल तक थे मँडराते
यार मुसीबत में
अब पास नहीं आते।
8
सबको पहचान लिया
छोटे जीवन में
कितना कुछ जान लिया ।
9
भटकों को ठौर मिला
घोर अँधेरे को
जैसे ये भोर मिला
10
तेवर दिखलाती हैं
लहरें  नौका को
अब डर दिखलाती हैं ।
-0-

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

751



1-सुदर्शन रत्नाकर

लो आया फिर
तुराज वसंत
धरा मुस्काई
ओढ़ चुनरी पीली
बही बयार
तन को सहलाती
खिले पलाश
ज्यों सूर्य अरुणाभ
महक उठी
छुपी आम्र मंजरी
ओस की बूँदें
धरा को नहलाएँ
सिर उठाए
तनी गेहूँ बालियाँ
रंगों के रेले
तितलियों के मेले
कोयल कूकी
भँवरों की गुँजार
धरा समेटे
झरे हरसिंगार
इन्द्रधनुषी
रंगीली वसुंधरा
सजा रूप निराला ।


2-सुनीता काम्बोज
1.
यूँ मत इंकार करो
इस भवसागर से
हे मोहन पार करो।
2.
हीरों से जड़ डाला
मुझसे पत्थर को
गुरुवर ने गढ़ डाला ।
3.
जीवन- सुर गा लेना
जब ये मन भटके
इसको समझा लेना।
4.
खुद्दारी खोई है
ऐसा लगता है-
मानवता सोई है।
5.
हर बार बड़ी कर दी
उसने नफरत की
दीवार खड़ी कर दी ।
6.
कल होली रूठ गई
आज अभागन से
रंगोली रूठ गई ।
-0-