माहिया— रश्मि विभा त्रिपाठी
1
कुछ अब न तमन्ना है
प्यार तुम्हारा तो
ये हीरा- पन्ना है।
2
रूठे हो, क्या तुक है
देखो चाहत का
रिश्ता ये नाज़ुक
है।
3
हो जाती हूँ गुम मैं
तेरे होठों के
इस शोख तबस्सुम में।
4
देती हूँ रोज तुझे
एक सदा- आजा
साँसों का दीप बुझे।
5
दिल में बस प्यार
रखो
सबकी ख़ातिर तुम
कोई न ग़ुबार रखो।
6
जाने ये कौन बला
आज किसी का भी
कोई चाहे न भला।
7
हर पीर छिपाऊँगी
तेरी ख़ातिर मैं
हर पल मुस्काऊँगी।
8
चन्दा- सा प्यारा वो
क्यूँ किस्मत का फिर
रोशन न सितारा हो।
9
चन्दा की चमक
तुम्हीं
फूलों की ख़ुशबू
तितली की दमक
तुम्हीं।
10
वो हो मुझसे न ज़ुदा
अब पल भर को भी
कर इतना करम ख़ुदा।
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3 टिप्पणियां:
मेरे माहिया को त्रिवेणी में स्थान देने के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण माहिया। हार्दिक बधाई रश्मि जी।सुदर्शन रत्नाकर
प्रेम से परिपूर्ण सुंदर माहिया!
~सादर
अनिता ललित
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