रविवार, 29 जनवरी 2012
मंगलवार, 24 जनवरी 2012
बचपन के दिन
प्रियंका गुप्ता
याद आते हैं
बचपन के दिन
खेलते हुए
लड़ना-झगड़ना
कुट्टी करना
फिर एक हो जाना
गुट्टी फोड़ना
गेंद-ताड़ी खेलते
गिर पड़ना
गिर के सँभलना
मिट्टी के टीले
चढ़ के फिसलना
फूलों पे बैठी
तितली पकड़ना
हरी घास पे
लोटपोट होकर
ओस की बूँदें
आँखों पर मलना
माँ का हाथ से
हर कौर खिलाना
दूर देश की
कहानियाँ सुनाना
रात घिरे तो
तारों की छाँव तले
आँचल ओढ़
माँ से लिपट सोना
वक़्त गुज़रा
हम बड़े हो गए
गुम हो गई
पुरानी निशानियाँ
वो शरारतें
नानी की कहानियाँ
मन चाहता
काश! कोई लौटा दे
वो बीता पल
छोटी-छोटी खुशियाँ
नन्हें सपने
मासूम बदमाशी
पर पता है-
फिर ऐसा न होगा
जो चला गया
लौट के नहीं आता
यादें सताती
अब यूँ ही जीना है
मीठी यादों के संग...।
-0-
रूठी किस्मत
डॉ अमिता कौंडल
रूठी किस्मत
तुझसे ऐ नादान
क्या सोचती
न जाने दे अबके
चले जो गए
तो पछताएगी तू
नैनों में आँसू
ले द्वार पर बैठी
हर शाम को
दीप जलाएगी तू
और सुबह
तक दीप संग तू
बुझ जाएगी
विरह की पीड़ा में
औ विरहन
दिन रैन अश्रु ही
बहाएगी तू
उठ रोक ले उन्हें
जाने न देना अब
तुझसे ऐ नादान
क्या सोचती
न जाने दे अबके
चले जो गए
तो पछताएगी तू
नैनों में आँसू
ले द्वार पर बैठी
हर शाम को
दीप जलाएगी तू
और सुबह
तक दीप संग तू
बुझ जाएगी
विरह की पीड़ा में
औ विरहन
दिन रैन अश्रु ही
बहाएगी तू
उठ रोक ले उन्हें
जाने न देना अब
-0-
मंगलवार, 17 जनवरी 2012
तेरी ख्वाहिश
डॉ0 हरदीप कौर सन्धु
नदी के किनारे दो
जीवन भर
एक-संग तो चले
मिल न सके
थी फिर भी मगर
उम्मीद एक-
गिरे जो समन्दर
कभी ये नदी
एक हो चलें
हम दोनों में कुछ
एक-सा लगे
मेरे दुःख जैसा ही
कभी तू लगे
रौशनी सी- बिखरे
हँसती जो मैं
ये तू क्या जाने भला
रगों में मेरी
मेरा खून जो बहे
ख्वाहिश तेरी
शायद मिलें
कभी ख्वाबों तक में!
प्यार की दोस्ती
यहाँ रहेगी सदा
हम मिलें न मिलें !
-0-
परछाई की पीड़ा
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सटकर दो पल
जलन -भरी
मेरी परछाई से
दे देगी पीड़ा
दो पल की छुअन
जग जाएँगी
सोई सभी कथाएँ
तड़पा देंगी
जीवन की व्यथाएँ !
वो स्वर्णकेशी
परियों का नर्तन
अश्रु-चुम्बन
भावमग्न होते ही
फिर लौट न पाना
विवशता में
कुछ छटपटाना
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
वो प्यार-भरी
सहमी और डरी
लिख न पाना-
‘जन्मों की अभिलाषा,
आग जगी मन की ।
-0-
शुक्रवार, 13 जनवरी 2012
खुशी की तलाश
कमला निखुर्पा
मन -चातक
प्यासा सागर -तीरे
कब बरसे ?
स्वाति जल की बूँदें
युगों की प्यास बुझे ।
2
बात अधूरी
गीत हुए न पूरे
साँसे अधूरी
आस रही अधूरी
ये उम्र हुई पूरी.
3
‘खुशी रुक जा
मुझे भी साथ ले ले’
‘कैसे ले चलूँ ?
पैरों में पहनी है
दुःखों की बेड़ी तूने।” .
मैं तो चुप थी
फिर क्यों गूँजी चीख ?
मन की घाटी
कैसे हुई वीरान ?
पहाड़ क्यों दरके ?
5
चन्दन -कुंज
स्वर्ण मंडप तले
मिल विहग
गाएँ मंगल -गान
दूल्हा वसंत आया ।
ओ मेरे मीत !
मिलना तेरा -मेरा
मिले हैं जैसे
नदिया का किनारा .
मन क्यों घबराया ?
8
पल में मिली
बिछुड़ी युगों तक
सदियाँ बीतीं
गुनगुनाती रही
गीत तेरे नेह के ।
-0-
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गुरुवार, 5 जनवरी 2012
दर्दीला इंद्रधनुष
डॉ0 अनीता कपूर
1
बरसी घटा
पानी-पानी हुई मैं
बरसी घटा
उम्र के नभ खिला
दर्दीला इंद्रधनुष
पानी-पानी हुई मैं
बरसी घटा
उम्र के नभ खिला
दर्दीला इंद्रधनुष
2
मैं उतरन
बनना नहीं चाहूँ
तू तो हवा -सा
तू बदलता रिश्ते
कपड़ों की तरह
बनना नहीं चाहूँ
तू तो हवा -सा
तू बदलता रिश्ते
कपड़ों की तरह
3
ताजमहल
है रिश्ता यूँ जोड़ता
चूमता माथा
भटकती कहानी
लरजते होंठों से
4
टूटी लकीरें
उल्टी- सी इबारतें
जख्मों की बातें
माथें पड़ी लकीरें
इतिहास दफ़न
5
नदी में चाँद
तैरता ही रहता
पी लिया घूँट
नदी का वही चाँद
उतरा हथेली पे
6
कोख का क़र्ज़
कोख का बही खाता
रिश्ते मुनीम
फिर तो हेरा-फेरी
कराहती ज़िन्दगी
कोख का बही खाता
रिश्ते मुनीम
फिर तो हेरा-फेरी
कराहती ज़िन्दगी
7
अरी ज़िन्दगी
किसके लिए काते
मोह का धागा
कच्ची डोर के रिश्ते
मोह का धागा
कच्ची डोर के रिश्ते
बचाऊँ भी मैं कैसे
8
यह सड़क
है दिल धड़काती
बन सर्पीली
ले आती उसे घर
ले के हाथ में हाथ
है दिल धड़काती
बन सर्पीली
ले आती उसे घर
ले के हाथ में हाथ
9
बरसों बाद
हुई है मुलाकात
काँपें हैं मन
हँसी, अधूरी नज़्म-
‘मुझे पूरा तो करो’
काँपें हैं मन
हँसी, अधूरी नज़्म-
‘मुझे पूरा तो करो’
10
टुकड़ा धूप
थामकर उँगली
सूरज की वो
सीढियां अँधेरे की
फिर उतर गया
थामकर उँगली
सूरज की वो
सीढियां अँधेरे की
फिर उतर गया
11.
बिखरें रंग
फूलों से झरे हुए
धूप फागुनी
सजे धरा -गगन
जग- मनभावन
12
रेशमी धूप
सपनो के आँगन
हुआ उजाला
साँसों की सरगम
छेड़े सुर सितार
-0-
अपने से लगते
सुभाष नीरव
1
पी लिये आँसू
सह लीं तकलीफ़ें
उफ्फ नहीं की
बूढ़े माँ-बाप आज
कितने लाचार हैं!
2
बनी जब से
पीर परबत सी
सुप्त हो गई
अहसास की भूमि
दुख लगे न सुख।
3
दूर भागते
रहे सुख हमसे
दुख लेकिन
संग- संग चलते
अपने से लगते।
4
सोये न भूखे
इक दिन भी हम
अम्मा के होते
खुद न खाकर जो
रहीं हमें खिलातीं।
5
बूढ़े माँ-बाप
अपने ही घर में
भोगते शाप
बेबसी, लाचारी का
अकेले चुपचाप।
6
तितलियों-सी
मन की कामनाएँ
अपने पीछे
हरदम दौड़ाएँ
बाज कभी न आएँ।
7
राह को रोके
खड़े रहे पहाड़
जाऊँगा पार
नहीं तोड़ पाएँगे
ये मेरा मनोबल।
8
जड़ें जिनकी
धरती के भीतर
होतीं गहरी
आँधियों के सम्मुख
वही तानते सीना।
9
कह न पाये
कभी दिल की बात
जिसे अधर
नयन कह गए
एक ही इशारे में।
10
पंछी यादों के
मन-गगन पर
ऊँची उड़ानें
हरदम भरते
कभी न थकते।
11
ज़ोर आंधी ने
अन्तिम क्षण तक
खूब लगाया
पर बुझा न पाई
लौ मेरे भीतर की।
12
जब भी हुआ
जीवन में अकेला
याद तुम्हारी
मेरे संग आ बैठी
कविता बनकर।
13
बिखर जाता
तिनके तिनके सा
आंधियों में मैं
यदि तुमने मुझे
संभाला नहीं होता।
14
जीवन पथ
ठोकरों से भरा था
मेरा मगर
तुम साथ चले तो
ये सुहाना हो गया।
15
मोमबत्ती-सा
खुद को जलाकर
हम तो लड़े
अँधेरों के खिलाफ़
उजालों की खातिर।
16
दु:ख तो रहे
सच्चे साथी सरीखे
संग हमारे
सुख परायों जैसे
छूकर चले गए।
17
ख़बर न थी
लुटेगा यूँ काफ़िला
बीच राह में
अपनों के हाथों ही
साजिश के चलते।
-0-
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