रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सटकर दो पल
जलन -भरी
मेरी परछाई से
दे देगी पीड़ा
दो पल की छुअन
जग जाएँगी
सोई सभी कथाएँ
तड़पा देंगी
जीवन की व्यथाएँ !
वो स्वर्णकेशी
परियों का नर्तन
अश्रु-चुम्बन
भावमग्न होते ही
फिर लौट न पाना
विवशता में
कुछ छटपटाना
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
वो प्यार-भरी
सहमी और डरी
लिख न पाना-
‘जन्मों की अभिलाषा,
आग जगी मन की ।
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6 टिप्पणियां:
भाव विभोर करते,जीवन की गहनता,सरलता से समझाते अति सुदर।
फिर लौट न पाना
विवशता में
कुछ छटपटाना
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
अति सुन्दर भावना।
कृष्णा वर्मा
चोका में भावों को अच्छी अभिव्यक्ति दे रहे हैं आप
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
सुबकता चाँद ...कितना सुन्दर बिंब !!!
man mein gahre utarte ehsaas...
फिर लौट न पाना
विवशता में
कुछ छटपटाना
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
bhav aur shabd donon hin behtareen. badhai Kamboj bhai.
बहुत ही मार्मिक चोका लिखा है हिमांशु जी .....बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ...
डा. रमा द्विवेदी
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