शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

खुशी की तलाश


कमला निखुर्पा
1
मन -चातक
प्यासा सागर -तीरे
कब बरसे ?
स्वाति जल की बूँदें
युगों की  प्यास बुझे
2
बात अधूरी
गीत  हुए न पूरे
साँसे अधूरी
आस रही अधूरी
ये उम्र हुई पूरी. 
3
‘खुशी रुक जा 
मुझे भी साथ ले ले’ 
‘कैसे ले चलूँ ?
पैरों में पहनी है
दुःखों की बेड़ी तूने” .

4
मैं तो चुप थी
फिर क्यों गूँजी चीख ?
मन की घाटी

कैसे हुई वीरान ?
पहाड़ क्यों दरके  ?
5
चन्दन -कुंज
स्वर्ण मंडप तले
मिल विहग
गाएँ  मंगल -गान
दूल्हा वसंत आया ।
7
ओ मेरे मीत !
मिलना तेरा -मेरा
मिले हैं जैसे
नदिया का किनारा .
मन क्यों घबराया ?

8
पल में मिली
बिछुड़ी युगों तक
सदियाँ बीतीं
गुनगुनाती रही
गीत तेरे नेह के ।
-0-
कमला निखुर्पा की अन्य रचनाएँ पढ़ने के लिए युगचेतना को क्लिक कीजिए ।

6 टिप्‍पणियां:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सभी ताँका बहुत ही भावपूर्ण हैं|
मन को छू गई सारी रचनाएँ...

Rachana ने कहा…

बात अधूरी
गीत हुए न पूरे
साँसे अधूरी
आस रही अधूरी
ये उम्र हुई पूरी.
sahi ek dam sahi wah kaha hai man ne aapki is bat par
rachana

बेनामी ने कहा…

खुशी रूक जा बहुत सुन्दर भाव

कृष्णा वर्मा

Devi Nangrani ने कहा…

पल में मिलीबिछुड़ी युगों तकसदियाँ बीतींगुनगुनाती रहीगीत तेरे नेह के ।
बेहद सुंदर रचनात्मक अभिव्यक्ति
बढ़ायी

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

बात अधूरी
गीत हुए न पूरे
साँसे अधूरी
आस रही अधूरी
ये उम्र हुई पूरी.
Sabhi tanka bahut sun\dr bhavon se purn hai ..ye tanka bahut achchha laga...

बेनामी ने कहा…

खुशी रुक जा
मुझे भी साथ ले ले’
‘कैसे ले चलूँ ?
पैरों में पहनी है
दुःखों की बेड़ी तूने।

बेहद सुंदर अभिव्यक्ति