डॉ0 हरदीप कौर सन्धु
नदी के किनारे दो
जीवन भर
एक-संग तो चले
मिल न सके
थी फिर भी मगर
उम्मीद एक-
गिरे जो समन्दर
कभी ये नदी
एक हो चलें
हम दोनों में कुछ
एक-सा लगे
मेरे दुःख जैसा ही
कभी तू लगे
रौशनी सी- बिखरे
हँसती जो मैं
ये तू क्या जाने भला
रगों में मेरी
मेरा खून जो बहे
ख्वाहिश तेरी
शायद मिलें
कभी ख्वाबों तक में!
प्यार की दोस्ती
यहाँ रहेगी सदा
हम मिलें न मिलें !
-0-
4 टिप्पणियां:
प्यार की दोस्ती
यहाँ रहेगी सदा
हम मिलें न मिलें !
अदभुत संगम शब्दों का,सुंदर प्रस्तुति।
हँसती जो मैं
ये तू क्या जाने भला
रगों में मेरी
मेरा खून जो बहे
ख्वाहिश तेरी
क्या खूब भाव। प्यार की इंतहा यूं भी हुआ करती है। बधाई
हँसती जो मैं
ये तू क्या जाने भल
रगों में मेरी
मेरा खून जो बहे
ख्वाहिश तेरी
उत्कृष्ट भाव...बधाई।
कृष्णा वर्मा
bahut sundar ehsaas...
प्यार की दोस्ती यहाँ रहेगी सदा
हम मिलें न मिलें !
shubhkaamnaayen.
एक टिप्पणी भेजें