शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

1199

 

1-सेदोका/ अनिता मंडा

1.

काम निबटा

ली गहरी जम्हाई

सर्दी की दोपहर।

धूप के फाहे

सलाई पर नाचें

अधबुना स्वेटर।

2.

उड़ती रही

पल भी न ठहरी

धूप की तितलियाँ।

बूढ़ी हो गई

जाड़े की दोपहर

छिली मूँगफलियाँ।

-0-

2-ताँका/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1
हवा क्या चली
बिखर गए सारे
गुलाबी पात
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
2
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
पीठ जकड़ी
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
3
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-
'मैं भी हूँ साथ'
थामकरके हाथ
सफ़र करें पूरा 

-0-

बुधवार, 20 नवंबर 2024

1198

 भीकम सिंह 

1

प्रदूषण के

लौटते हुए पथ

कालिख में से 

उठता हुआ धुऑं

धूप ठहरी

दिन की देहरी पे

हर सुबह ,

अँधेरा लिए खड़ा 

दिल्ली का पास,

योजना पराली की 

चलती छठे -मास ।

2

बाँट देना है 

बहुत आसान- सा

जोड़े रखना 

बहुत कठिन है 

बाँटे रखना 

निर्ममता जैसा है 

और जोड़ना 

दयालुता शायद 

फिर भी आज

कुछ लोग करते 

बाँट देने का काज ।

-0-