1-सेदोका/ अनिता मंडा
1.
काम निबटा
ली गहरी जम्हाई
सर्दी की दोपहर।
धूप के फाहे
सलाई पर नाचें
अधबुना स्वेटर।
2.
उड़ती रही
पल भी न ठहरी
धूप की तितलियाँ।
बूढ़ी हो गई
जाड़े की दोपहर
छिली मूँगफलियाँ।
-0-
2-ताँका/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हवा क्या चली
बिखर गए सारे
गुलाबी पात
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
2
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
पीठ जकड़ी
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
3
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-
'मैं भी हूँ साथ'
थामकरके हाथ
सफ़र करें पूरा
-0-