शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

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1-सेदोका/ अनिता मंडा

1.

काम निबटा

ली गहरी जम्हाई

सर्दी की दोपहर।

धूप के फाहे

सलाई पर नाचें

अधबुना स्वेटर।

2.

उड़ती रही

पल भी न ठहरी

धूप की तितलियाँ।

बूढ़ी हो गई

जाड़े की दोपहर

छिली मूँगफलियाँ।

-0-

2-ताँका/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1
हवा क्या चली
बिखर गए सारे
गुलाबी पात
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
2
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
पीठ जकड़ी
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
3
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-
'मैं भी हूँ साथ'
थामकरके हाथ
सफ़र करें पूरा 

-0-

12 टिप्‍पणियां:

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही शानदार लिखा है।
आपको हार्दिक बधाई।

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका।
हार्दिक बधाई 💐🌹

सादर

dr.surangma yadav ने कहा…

सेदोका एवं ताँका दोनों ही अति सुन्दर। बहुत-बहुत बधाई आपको।

भीकम सिंह ने कहा…

शब्दों का अपना जादू होता है जो ( हवा जो चली /बिखर गए सारे/गुलाबी पात /मुड़कर देखा जो/ मीत कोई ना साथ) सर के इस ताॅंका में हुआ है। अनुभव की क्रिया से उपजा ताॅंका, हार्दिक शुभकामनाऍं सर। उड़ती रही/पल भी ना ठहरी..... लाजवाब सेदोका , हार्दिक शुभकामनाऍं।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर सेदोका । हार्दिक बधाई अनिता जी।

शब्दों का जादू बिखेरते ताँका के लिए भैया को बहुत बहुत -बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

अनिता मंडा ने कहा…

मेरी सेदोका रचना को यहाँ प्रकाशित करने व प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने पर हार्दिक आभारी हूँ।

भीकम सिंह जी ने सही कहा"शब्दों का अपना जादू होता है। "
हवा क्या चली/बिखर गए सारे/गुलाबी पात
/मुड़कर देखा जो/मीत कोई ना साथ।- इतनी लयात्मकता है न कि बह चले हैं शब्द। पानी की लहर ज्यों रिदम में उठ गिर रही हो।
बहुत बधाई अंकल जी प्यारे से ताँका रचे आपने।

बेनामी ने कहा…


सेदोका व ताँका बहुत ही सुंदर लगे | लेखनी को नमन -पुष्पा मेहरा

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

सुंदर ताँका एवं सेदोका की हार्दिक बधाई।
शुभकामनाएँ।

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर सेदोका एवं ताँका ...हार्दिक बधाई।

सहज साहित्य ने कहा…

आप सबको मेरे ताँका पसन्द आए, अतिशय आभार! आप 14 वर्ष में प्रकाशित त्रिवेणी को अपनी रचनाओं से सींचते रहिए। यही आशा है।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी सेदोका और ताँका अत्यन्त भावपूर्ण। अनिता जी और काम्बोज भैया को हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह !वाह! अनीता जी और भाई साहब दोनों की रचनाएँ बेहतरीन, आनंद आ गया!