राजेन्द्र वर्मा
1
पौ फट रही,
गुलाबी होते जाते
उषा के गाल,
सरका मुख-पट
झाँकने लगा सूर्य ।
2
दुःख टँगा है
देह-अलगनी पे,
मन है खाली ।
रिश्तों के मेघ झरें,
टपके सूनापन ।
3
मेघ झरते
रिमझिम-रिमझिम
एक लय में,
बज रहा सितार,
मुग्ध रविशंकर !
4
चटख धूप,
घर से निकली है
वीर बहूटी।
लाल दुशाला डाले
कौन देश को जाती ?
5
पवन नाचा,
गा उठा नरकुल,
बँसवार भी ।
बज रही बाँसुरी
तुम भी सुनो, कृष्ण !
6
टूट के गिरी
एक और पंखुरी,
फूल बेबस ।
भौंरा भी लौट गया
गुनगुन करता ।
7
“दुनियावालो
!
मुझे भी तो जीने दो’’
पेड़ ने कहा ।
सुनता नहीं कोई,
हर कोई बहरा !
8
कब चेतोगे?
कटते जाते पेड़
दिन-पे-दिन,
बनती जाती पृथ्वी
पुनः आग का गोला !
9
बाग़ उजड़े,
उगी है बोनसाई
फ़्लॉवर-पॉट्
में ।
कोई बतलाओ भी,
कहाँ जाए चिड़िया ?
10
कुक् ! कुक्कुड़ू कूँ !!
कुक्कुट ने दी बाँग,
जगा औचक,
देखा, पाँच बजे थे,
पाँच जून भी आज ।
11
घर से दूर
हॉस्टल का जीवन
मेस का खाना,
रोटी का इन्तज़ार,
आ गई माँ
की याद !
12
गाँठ बाँधे है
इमली का चूरन
इमरतिया,
बँधा रही ढाँढस
मिचलाते मन को ।
13
गिरते बचा
मुँडेर पर काक
ढेला खाकर,
सँभला, उड़ चला
दे ही गया संदेशा !
14
एक्सीडेंट हुआ,
सिर से बहा ख़ून,
रुकी न कार,
उमड़ा फ़ुटपाथ,
बाक़ी है अभी जान ।
15
चाय पिलाए,
जूठे कप भी धोये
मन का सच्चा !
हमें भी बतलाना
ऐसा ही कोई बच्चा ।