बुधवार, 29 जुलाई 2020

929-दो शुभाशीष!

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'


हर साल मेरा जन्मदिन आने से पहले ही कितनी दफा पूछा करते थे आप
"बेटी तुझे क्या चाहिए अबकी बार ?
दुनिया की हर चीज तेरे पापा तेरी खुशी के लिए तुझे दिला सकते हैं....
और मैं....
मैं हर बार आपके गले लगकर यही कहती
"मुझे मेरे पापा चाहिए....
मेरे प्यारे पापा....
जो मेरे लिए मेरी पूरी दुनिया हैं...."
"मैं हूँ ना हमेशा तेरे साथ बेटी....
देख....
वैसे तो तू रश्मि है....
मगर किसी भी राह पर चलते हुए तू कभी अँधेरों में भटक गई तो उस वक्त तेरे पीछे मैं जुगनू, दिया, सूरज या तारा बनकर हमेशा तेरे पीछे-पीछे चलूँगा....
तुझे रास्ता दिखाने को....
तुझे तेरी मंजिल तलक ले जाने को....’’
तो फिर आज मेरी खुशी के लिए मुझे वही तोहफा दीजिये ना ?”
कीजे रौशन
जगा आशीष-ज्योति
मेरा जीवन!
आपके जाने के बाद आज यह मेरा पहला जन्मदिन है मैं आपके बिना किस तरह मनाऊँ ?
बताओ ना पापा....
कौन लाएगा इस बार मेरे लिए केक ?
कौन मुझे मेरी पसंद का तोहफा दिलाएगा ?
पापा....
मेरी आँखें आपको देख नहीं सकतीं....
मगर मुझे अहसास है....
कि आप यहीं हो मेरे आस-पास....
मुझे रोता छोड़ कर आप कहीं जा ही नहीं सकते
आपका दिल भी आज रो रहा होगा मेरी आँखों में आँसू देखकर....
मुझे यकीन है कि आप मेरी खुशी के लिए आज भी मेरे जन्मदिन पर वही तोहफा दोगे जो मुझे चाहिए....
मैं जब तक जियूँ....
अपना हाथ मेरे सर पर सदा बनाए रखिगा....
मेरे प्यारे पापा....
अपने शुभाशीष की रौशनी आप स्वर्ग से निरंतर मुझे दिखाते रहिगा,ताकि मैं ज़िंदगी की इन अँधियारी राहों में भटकने न पाऊँ कभी....
पिता की तस्वीर के आगे नतमस्तक हो रश्मि मन ही मन उनका आशीर्वाद माँगती है-
झुका ये शीश
आपके चरणों में
दो शुभाशीष!
"आपके चरणों में आपकी बेटी का कोटि कोटि नमन!"
-0-

सोमवार, 27 जुलाई 2020

928-एक पत्र, ईश्वर के पते पर


माँ के जन्मदिन पर उनके नाम एक पत्र, ईश्वर के पते पर
-अनिता ललित

मेरी प्यारी माँ,
                ढेर सारा प्यार,
आज २७ जुलाई, आपका जन्मदिन है! ईश्वर का कितना भी शुक्रिया अदा करूँ कम है –कि उसने आपको इस धरती पर भेजा! मैंने आपकी कोख़ में अपनी पहली साँस ली, फिर आपके स्नेह की छत्रछाया में पली-बढ़ी और मुझे आपको ‘माँ’ कहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ!          
आपको अपने शब्दों में उतारना मेरे लिए सदा से ही बहुत कठिन रहा है! आप इतनी ख़ूबसूरत, स्नेहमयी, सरल, सहज, सीधी-सादी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाली तथा साफ़ एवं पवित्र मन की स्त्री थीं कि आपके जैसा दुनिया में कोई दूसरा होना ही मुश्किल है! मेरे लिए तो सच में ही, ईश्वर यदि कहीं था, तो वह आपके ही रूप में था! मेरे हिस्से का कोई भी कष्ट शायद आपके रहते मैंने कभी अकेले नहीं सहा –मुझसे पहले आप उसे अपने ऊपर ले लेती थीं! मैं तो चिड़िया के बच्चे की तरह हमेशा ही आपके डैनों में सुरक्षित थी! मगर कब तक ... जाना तो हर आने वाले को होता है, यह बात स्वीकारने में मुझे थोड़ा वक़्त लगा था!
शरीर से आज आप हमारे बीच नहीं हैं, मगर सच तो यह है कि आपको मैंने कभी अपने से दूर महसूस ही नहीं किया! आप कल भी मेरे दिल में थीं, आज भी हैं और सदैव रहेंगीं!
         पता है माँ! आज जब बच्चे मुझे किसी-किसी बात पर कहते हैं कि ‘वाह! माँ! एकदम नानी वाली भिन्डी बनाई है! म्मम्म...क्या स्वाद है!’ या  ‘माँ! तुम बिल्कुल नानी की तरह खाने में लाड़ दिखाने लगी हो!’ या ‘माँ! तुम बिल्कुल नानी की तरह ही सीधी-सादी हो, थोड़ा तो चालाक बनो!’ ... तो कभी-कभी तो मुझे भी ऐसा लगने लगता है कि मैं आपके जैसे होती जा रही हूँ! तब मुझे बहुत गर्व महसूस होता है कि चलो, मैं कहीं तो आप -सी हूँ! जैसे अच्छे संस्कार और विचार आपने मुझे दिए, वैसे ही मैं अपने बच्चों को भी देती रहती हूँ! आपने हमेशा मुझे यही सिखाया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं! तुम्हारे कर्म ही तुम्हारी पहचान हैं! –बस यही बात मैंने गाँठ बाँध ली है, और बच्चों को भी यही समझाने की कोशिश करती हूँ!
        वैसे तो मैं सदैव आपको अपने क़रीब पाती हूँ! मगर पता है माँ! आपकी कमी सबसे ज़्यादा कब खलती है? –तब, जबकि किसी से अपने दिल की बहुत अंतरंग बात करनी हो -जैसे मैं और आप हमेशा करते थे न! –वैसे ही! मगर ईश्वर ने उसका भी उपाय कर दिया है –आपकी नातिन, यानी मेरी बिटिया! उसने भी तो आपसे उसी तरह प्यार किया है, जिस तरह मैंने किया है! बल्कि कभी-कभी तो उसे मुझसे भी अधिक आपकी चिंता रहती थी! अब शादी के बाद वह अपने घर में है, मगर दूर से ही सही, वह भी बिल्कुल आपकी ही तरह मेरा ख़याल रखती है, मुझे मेरी बेवक़ूफ़ियों पर टोकती है, मुझे समझाती है, आपकी ही तरह मेरे आगे ढाल बनकर खड़ी हो जाती है! मेरे एक शब्द से या अक्सर बिना कहे ही मेरे दिल की परेशानी को भाँप लेती है! कभी-कभी तो मुझे लगता है कि मेरी एक नहीं दो-दो माँ हैं! 
आज और हर दिन, मेरी यही प्रार्थना है कि आप सदैव ईश्वर के सानिध्य में, उनकी गोद में रहें –हर दुःख, हर तक़लीफ़ से दूर! वहीं से अपना स्नेहाशिर्वाद हम सबपर हमेशा-हमेशा बनाये रखिये!

दूर हो तो भी
सदा साथ रहती
माँ नहीं खोती!

मन की बातें
जो माँ से थी करती -
बिटिया बाँटे!
-0- अनिता ललित ,1/16 विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ 226010



शनिवार, 25 जुलाई 2020

927


रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
1
"धरा! एक अवसर उसे देना चाहिए,
माना कि उसने गलत किया; मगर उसे अहसास भी तो है अपनी गलती का, माँग रहा है माफी, फिर  क्यों नहीं उसे एक बार माफ़ कर देती
"हाँ शायद माफ़ कर देती , अगर मैं कर पाती; पर जो उसने किया, कितना दुखा था मन, जब उसने मुझे निकाल फेंका था अपने मन सेउसे माफ़ करने की गवाही अब मेरा मन देता ही नहीं,



धोखे का शूल
चुभा, मुरझा गया
प्रेम का फूल

-0-
2
"मन की
 मिट्टी में मैंने भरोसे का बीज बोया,
एक रिश्ता अंकुरित हुआ, प्रेम के खाद-पानी से दिनों-दिन उसका स्वरूप बढ़ा,
मैं बेहद खुश थी वो हरियाली देख कर,
पता ही नहीं चला कि.....
जिसे इतनी मेहनत से सींचती रही....
सम्बन्धों के उस शजर में....
कब अविश्वास की दीमक लग गई,
खोखला होकर धराशायी हो गया वह पेड़,
दुबारा क्या यह हरा भरा हो सकेगा ? तुम ही बताओ?


क्यों कटी डाल
रोते रिश्तों के पेड़
लिये सवाल
.
मेघा की आँखों में पानी भर आया, वह खामोश थी उसके लिए ये प्रश्न अनुत्तरित था!
-0-

बुधवार, 22 जुलाई 2020

926-सावनी झूले


1-कृष्णा वर्मा
1
सावनी झूले
आँसू की डोरी थाम
झूलतीं साँसें
याद आएँ सखियाँ
बचपन की प्यारी।
2
गरजे मेघ
पलटी गगन ने
अमृत देग
बूँदें करें धमाल
हुए बावरे ताल।
3
घिरीं घटाएँ
बौराई ठंडी हवाएँ
धरा मुस्काई
नूपुर बाँध बूँदें
छनक-छन आईं।
4
भीगी-सी रुत
मेघ शोर मचाएँ
गरजे घटा
बदरा बिजुरी से
तस्वीरें खिंचवाएँ।
5
कारे बदरा
बरसाएँ फुहारें
पंख फुलाए
चुल्लू भर पानी में
पंछी डुबकी मारें।
6
बरसी घटा
हरियाएँ घाटियाँ
नाचें हवाएं
हरियल बनड़े
बरखा संग गाएँ।
7
घोलें घटाएँ
जो अम्बर पे स्याही
कालिमा छाए
सूरज की हेकड़ी
तड़ाक टूट जाए।
8
सोमरस-सी
छलकें जब बूँदें
भीगते दिन
लुक-छिप के सूर्य
सोए नयन मूँदे।
-0-

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

925-दूसरा कबूतर



सुदर्शन रत्नाकर


मेरे  रसोईघर के सामने की दीवार पर सूर्योदय से पहले ही कबूतरों का एक जोड़ा  बैठता था। वे दोनों थोड़ी देर किलोल करते और फिर उड़ जाते। मैंने उन्हें दाना डालना शुरू कर दिया। वे इधर-उधर देखते, नीचे उतरते, दाना चुगते, कटोरे में रखा पानी पीते और दीवार पर जा बैठते हैं। यह क्रम कई दिन से चलता रहा है। मुझे भी सुबह- सुबह उन्हें देखने की आदत हो गई है। किसी दिन भूल जाऊँ या देर से किचन में आऊँ, तो वे गुटरगूँ करके, पंख फड़फड़ाकर मुझे याद दिला देते हैं। अब मेरी दिनचर्या कबूतरों को दाना डालने से शुरू होने लगी है।
        कभी -कभी ऐसा होता है कि जब मैं दाना डालती हूँ, एक ही कबूतर दीवार पर बैठा होता है; लेकिन वह तब तक नीचे नहीं उतरता, जब तक दूसरा जाए। दूसरे के आते ही वे दाना चुगने में व्यस्त हो जाते हैं। प्यार और सहयोग की भावना तो पक्षियों में भी होती है।
     कल एक ही कबूतर दीवार पर बैठा था। मैंने दाना फैला दिया सोचा-
दूसरा कबूतर आएगा, तो चुग लेंगे; पर दूसरा कबूतर बड़ी देर तक नहीं आया। मेरा ध्यान बार- बार उसकी ओर जा रहा था।मैंने देखा उसकी आँखें पनीली थीं । पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगा कि जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहता है, कुछ बताना चाहता है  पर निरीह पक्षी बोल तो सकता नहीं। अपना दर्द ,अपनी भावनाएँ कैसे बताए। मैं अपने कामों में व्यस्त  हो गई। थोड़ी देर बाद यूँ ही मैंने खिड़की के  नीचे झाँककर देखा, तो वहाँ कबूतर के पंख फैले हुए थे । लगता है  बिल्ली जो कुछ दिन से घर के बाहर घूम रही थी, कबूतर उसका शिकार हो गया है।  दूसरा कबूतर दीवार पर बैठा अभी तक मेरी ओर देख रहा था और फिर बिना दाना खाए वहाँ से उड़ गया। मेरा मन पीड़ा से भर गया।
निरीह पक्षी
किससे कहे पीड़ा
दिल तो रोता।

सुदर्शन रत्नाकर
-29,नेहरू ग्राँऊड
फ़रीदाबाद-121001
मोबाइल 9811251135