सुदर्शन
रत्नाकर
उगते सूर्य का मनोरम दृश्य मुझे सागर के किनारे खींच कर ले गया।आसमानी झील में खिलता लाल कमल ,जैसे नवेली दुल्हन शर्माते हुए धीरे-धीरे चली आ रही हो।थोड़ी ही देर में सारी सृष्टि सुनहरी किरणों से सुसज्जित हो इठलाने लगी ।
पेड-पौधे,फूल-पत्तियाँ किरणों को चूमने लगे।
पक्षी चहचहाने लगे ।नहाने के लिए किरणें लहरों पर उतर आईं, उस समय ऐसा लग रहा था मानों वे खुशी से नृत्य कर रही हों। मंद -मंद बहती पवन, लहरों का ऊँचा उठना और फिर नीचे गिरना मन को आकर्षित कर रहा था ।ऐसा दृश्य देख कर मेरा मन मचल उठा।लहरों में झूलती उन किरणों को छूने का लालच मन में आ गया।जो अब चाँदी की तरह लहरों पर चमक रही थीं। मैं पानी में उतर गई।
लहरों के संग खेलती आगे बढ़ती गई, उनका स्पर्श मुझे रोमांचित करने लगा लेकिन मैं यह भूल गई कि जितना आगे बढ़ रही हूँ उतनी ही सागर की गहराई और लहरों की ऊँचाई बढ़ रही है पर मैं रुकी नहीं , आगे बढ़ती ही गई, अब पानी मेरी कमर तक आ गया था और फिर जैसे ही एक उफनती हुई लहर मेरे पास आई, रेत मेरे पाँवों के नीचे से खिसक गई।मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं नीचे गिर गई। अब केवल मेरा सिर बाहर था। मैंने उठने की कोशिश की लेकिन उठ नहीं पाई,घुटनों पर दबाव के कारण फिर से गिर गई। मेरे आसपास कोई नहीं था, जिसे आवाज़ देकर सहायता माँग लेती।सागर में नहाता हुआ सूरज भी आगे बढ़ गया था। थोड़े ही समय में कितनी ही लहरें मेरे ऊपर से निकल गईं ।हर बार लगता ये लहरें मुझे निगल जाएँगी।मृत्यु की आशंका मुझे भयभीत करने लगी। मुझे इस दुनिया का मोह, उत्तरदायित्वों का भँवर अपनी ओर खींचने लगा और मैं लहरों की तरह उठती गिरती रही।
मैं प्रकृति का उत्सव देखने आई थी लेकिन मृत्यु के भय ने सब कुछ भुला दिया
मुझे तैरना नहीं आता फ़िर भी मैं उठने की अपेक्षा पानी में लेट कर हाथ -पाँव मारने की कोशिश करने लगी।मेरी कोशिश कामयाब होने लगी।मैं पहली लहर के साथ आगे बढ़ी।दूसरी लहर के साथ थोड़ा और आगे हुई और फिर धीरे -धीरे मैं उनके साथ साथ किनारे की ओर बढ़ने लगी थी। मेरे प्रयास ने मुझे किनारे पर पहुँचा दिया जहाँ जीवन खड़ा मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।
मैंने सागर को ओर देखा, लहरें अब भी अठखेलियाँ कर रही थी।
किरणों ने अपना सौन्दर्य खो दिया था और अब उष्मा दे रही थीं।
प्रकृति वैसे ही मुस्कुरा रही थी। मैं सागर के किनारे बालू पर निढाल लेट गई।मृत्यु मेरे पास से निकल गई थी;
लेकिन उसका अहसास मेरे अन्तर्मन को अभी भी छू रहा था।
मृत्यु जीवन का सत्य है और मोह जीवन का भँवर है, मृगतृष्णा है।
मृत्यु का डर
मृत्यु से भयावह
डराता मन।
-0-सुदर्शन रत्नाकर , ई-२९,नेहरू ग्राउण्ड ,फ़रीदाबाद १२१००१
मोबाइल ९८११२५११३५
12 टिप्पणियां:
बहुत ही भावपूर्ण सार्थक सन्देश देती हाइबन 👌
सच में मृत्यु के सामने होने पर भी हिम्मत नहीं हारना ही मृत्यु पर विजय है।
एक सुखद जीवन हमेशा इतंजार करती रहती है।
जीवन का मोह संघर्ष कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर आत्मबल देता है और बाधाओं को हरा कर विजय का सिरमौर सजाता है ,सुंदर प्रेरक हाइबन है बधाई सुदर्शन जी
पुष्पा मेहरा
मृत्यु शाश्वत सत्य है किंतु उसके सम्मुख होने पर भी भयभीत या हताश न होकर सतत जीवन हेतु संघर्षरत रहने का सकारात्मक संदेश देता सुंदर हाइबन।आदरणीया सुदर्शन जी को बधाई।
सत्याजी ,पुष्पा मेहरा जी,शिवजी श्रीवास्तव जी, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार ।
बहुत सुन्दर।रोमांचित कर गया आपका हाइबन।बहुत-बहुत बधाई ।
सुदर्शन जी बहुत रोमांचकारी हाईबन है मृत्यु और जीवन के बीच की लड़ाई को सुन्दर शब्दों में बांधा है हार्दिक बधाई |
बहुत ख़ूबसूरत हाइबन...... हार्दिक बधाई आपको।
बहुत सुंदर हाइबन सुदर्शन दी, पल पल उत्सुकता बनी रही कि आगे क्या होगा, बहुत आनन्द आया, आपको बधाई!
सुरंगमा जी,कृष्णा जी,सविता जी,प्रीति जी हाइबन पसंद करने के लिए हार्दिक आभार।
बहुत सुंदर हाइबन .... जीवन में एक ही क्षण में बहुत कुछ बदल जाता है, जो सौंदर्य पहले मन को भा रहा था एक घटना से उसका सौंदर्य समाप्त हो गया । जीवन और मृत्यु जैसे शाश्वत सत्य का कलात्मक चित्रण....
हार्दिक बधाइयाँ सुदर्शन जी
बहुत सुन्दर हाइबन. जीवन और मृत्यु के बीच के फ़ासले के अनुभव का बहुत अद्भुत वर्णन. उस अवस्था की अनुभूति को सोचकर सिहरन होने लगी. भावपूर्ण लेखन के लिए बधाई रत्नाकर जी. आभार.
मृत्यु जीवन का सत्य है और मोह जीवन का भँवर है, मृगतृष्णा है। बिल्कुल सटीक और सशक्त लिखा आपने, बहुत बहुत बधाई।
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