2-हाइबन
सुदर्शन
रत्नाकर
1-सूर्यास्त
साँझ के छह बजकर पैंतीस
मिनट हुए है। गोवा में अरब सागर के सामने बैठकर लहरों को उठते गिरते देख रही हूँ
शाम की हल्की धूप ने
उन पर सुनहरी लकीरें खींच दी हैं। दूर क्षितिज में थकामाँदा सूरज उसमें
उतरने के लिए मचल रहा है। सागर के वक्ष पर आसमान में छाई नारंगी रंग की परछाई ऐसे लग
रही है- मानो किसी कोमलांगी ने लहरों पर रंगोली
सजा दी हो। यह अद्भुत दृश्य मन को बाँधे जा रहा है। सूर्यास्त के एक-एक क्षण
को कैमरे में उतार रही हूँ।
जैसे ही सागर ने सूरज
को आग़ोश में लिया, निशा ने अपना साम्राज्य जमा लिया है। लहरों ने भी काली चादर ओढ़
ली है। सन्नाटा छाने लगा है।
थोड़ी देर में क्षितिज
में सूरज के स्थान पर तारे सागर में उतरने के लिए उतावले हो रहे हैं तथा उनकी परछाई
लहरों पर चमकते मोतियों का आभास दे रही है।
धीरे-धीरे टहलता हुआ
चाँद भी लहरों के साथ अठखेलियाँ करने आ पहुँचा
है। सागर से आते शीतल हवा के झोंकों का स्पर्श
मन को भीतर तक आह्लादित कर रहा है। मैं तट पर आकर सागर में उतरने लगती हूँ
फेनिल लहरें मुझे छूकर जब लौटती हैं, तो पाँवों के
नीचे की रेत खिसकने लगती है। लग रहा है जैसे मैं भी लहरों के साथ सागर में जा रही हूँ, सागर होने के लिए ।
अद्भुत
दृश्य
होता
जब सूर्यास्त
छूता
है मन।
-0-
2-कोई नहीं समझता
मेरा नाम परसी है।
पहले मैं अपनी माँ और बहन-भाइयों के साथ रहता था। हम सब बहुत छोटे थे फिर भी मिलकर
खेलते थे। थक जाते, तो माँ की गोद में दुबक जाते और मज़े से दूध पीते थे। कुछ दिन के
बाद मालिक माँ और हम सबको अपने शोरूम में ले गया। वहाँ जगह बहुत कम थी। हम खेल नहीं
सकते थे। फिर भी माँ के साथ खुश थे।
लेकिन यह ख़ुशी अधिक
समय तक नहीं रही। एक दिन एक व्यक्ति आया और पैसे देकर मेरे दो छोटे भाइयों को ले गया। माँ उस दिन बड़ी उदास रही। हमें भी अच्छा
नहीं लग रहा था। कुछ दिन बाद मेरी बहन को भी एक व्यक्ति ले गया। जब वह जा रही थी, तो
मैंने माँ और उसकी आँखों में आँसू देखे थे। अब मैं अकेला रह गया था।माँ का दूध पीने
का भी मन नहीं करता था। अकेला खेलने का तो
बिल्कुल ही नहीं। माँ और मैं बस उदास से शोरूम
में पड़े रहते। मैं कमज़ोर होता जा रहा था पर
खुश था कि कमज़ोर होने के कारण मुझे कोई भी नहीं ले जाएगा। मैं अपनी माँ के
साथ रह सकूँगा। पर मेरी ख़ुशी पर तुषारापात हुआ जब मिकेयला नाम की एक लड़की शोरूम में
आई। मेरी नीली आँखें उसे पसंद आ गईं। मालिक उस लड़की की मंशा को जान गया और उससे अधिक
पैसे लेकर बेच दिया। जाते हुए मैंने माँ कीं आँखों में बहते आँसुओं को देखा था।
मैं लड़की
के साथ उसके घर में रहने लगा। वह मुझे गोद में लेकर बहुत प्यार करती है। अपने कमरे में मेरे लिए बिस्तर
लगा दिया है। पर वह मुझे अपने बिस्तर पर साथ सुलाती है, मुझे गोद में लेकर बहुत प्यार
करती है। उसके प्यार के कारण मैं अपनी माँ को भी भूलने लगा हूँ। धीरे-धीरे मुझे यहाँ रहना अच्छा लगने लगा है; पर मालकिन सुबह खाना देकर घर से चली जाती हैं और शाम
के लौटकर आती हैं। इतना समय मैं घर में अकेला इधर उधर घूमता रहता हूँ।अलमारी पर चढ़ता
हूँ, खिड़की के परदे के पीछे बैठकर नीचे देखता हूँ, तो मेरा मन भी घूमने को करता है;
पर जा नहीं सकता। पॉटी-सू सू भी मशीन में ही करता हूँ। लड़की जो अब मुझे माँ जैसी लगती
है। अपनी सहेली के साथ कभी -कभी बाहर ले जाती
है, तो पिंजरे जैसे बैग में डालकर पीठ पर उठा लेती है। बस बाहर की हवा थोड़ी खा लेता
हूँ। खुले में घूमने की इच्छा मन में ही रह जाती है। लड़की की सहेली मुझे बिलकुल पसंद
नहीं है। मुझे मेरे नाम से नहीं, बिल्ला कहकर बुलाती है; पर जब दादी आती हैं, तो मुझे
बहुत अच्छा लगता है। वह सारा दिन घर में रहती हैं और गोद में उठाकर घूमती भी हैं। जब
वह चली जाती हैं तो फिर से मेरी दिनचर्या वही हो जाती है। अकेलापन बड़ा अखरता है। तब
सबकी बहुत याद आती है। मैं बोल नहीं सकता और मेरी भावनाओं को कोई समझता नहीं। किसे
बताऊँ कि प्यार मिलने पर भी यह क़ैद, यह अकेलापन सहन नहीं होता।
दुनिया स्वार्थी
नहीं है समझती
बेज़ुबानों
को॥
-0-
सुदर्शन
रत्नाकर-ई29,नेहरू
ग्राउंड, फ़रीदाबाद 121001
मोबाइल
न. 9811251135
7 टिप्पणियां:
सूर्यास्त के सौंदर्य बहुत सुंदर दिख रहा है।
कोई नहीं समझता : बहुत मार्मिक बना है, दिल को छू गया। बहुत बहुत बधाई आदरणीया।
सूर्यास्त के सौंदर्य बहुत सुंदर दिख रहा है।
कोई नहीं समझता : बहुत मार्मिक बना है, दिल को छू गया। बहुत बहुत बधाई आदरणीया।
दोनों हाइबन बहुत सुन्दर हैं, हार्दिक शुभकामनाएँ।
- भीकम सिंह
'कोई नहीं समझता' में बेज़ुबान पशु की पीड़ा को बहुत मार्मिक रूप में आपने लिखा है. सूर्यास्त बहुत सुन्दर है. दोनों हाइबन के लिए बधाई रत्नाकर जी.
सुदर्शन जी दोनों हाइबन बहुत सुंदर हैं । पूरे दृश्य प्रस्तुत किए हैं आपने । हार्दिक बधाई स्वीकारें । सविता अग्रवाल “ सवि “
अनिता मंडा जी-, भीकम सिंह जी, जेन्नी जी, प्रीति जी प्रेरक प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से आभार।
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