दैवीय बाँध
अनिता ललित
जब से बातें समझ में आनी शुरू हुईं थीं, मम्मी-पापा से यही सुनते आए
थे - “तुम्हारे
जन्म के समय घर में शहनाई बज रही थी! तुम हमारे लिए लक्ष्मी हो, तुम्हारे जन्म के
बाद ही
पापा के काम की तरक्क़ी भी हुई और घर में ख़ुशहाली आई!” सुनकर बड़ा अच्छा लगता
था हमें, इतराते फिरते थे पूरे घर में! यही नहीं! अपने हर जन्मदिन पर मम्मी-पापा
से यही सुनते आते रहे! ढेर सारे आशीर्वाद और प्यार-भरी बातों
के साथ, यह बात कहना वे दोनों कभी नहीं भूलते थे! हमारी सदैव पूरी कोशिश रहती थी कि
कोई भी ख़ुशी का दिन हो, चाहे कोई त्योहार हो, हमारा या पापा-मम्मी का जन्मदिन हो, हममें से किसी के विवाह की
वर्षगाँठ हो, मातृ-दिवस हो, पितृ-दिवस हो, शिक्षक-दिवस हो, गुरु पूर्णिमा हो...सबसे
पहले हम उनको फ़ोन करके शुभकामनाएँ देते थे, उनका आशीर्वाद लेते थे!
जीवन में सुख-दुःख तो
लगे ही रहते हैं! इस दुनिया में आपके दुख पर ख़ुश होने वाले तथा सुख पर जलने व दुखी
होने वाले तो बहुत मिल जाएँगे, परन्तु आपके सुख से, आपकी प्रसन्नता से यदि किसी को
सचमुच आपसे अधिक ख़ुशी मिलती है, तो वे होते हैं आपके माता-पिता! हमारे हर सुख, हर ख़ुशी पर,
पहला अधिकार पापा-मम्मी का है, हमेशा से हमारा यही मानना रहा है! उनके आशीर्वचनों
से हमारी ख़ुशी कई-कई गुना बढ़कर हम तक वापस पहुँचती थी!
इस बार हमारा पहला
जन्मदिन है, जिसमें न पापा साथ हैं, न ही मम्मी! याद तो बहुत आती है उनकी, दुःख भी
होता है, मगर मन को यही समझाते हैं, कि सारे कष्टों से, इस दुनिया के मायाजाल से, छल-प्रपंचों
से रिहा होकर, वे दोनों परमात्मा की गोद में सुक़ून से बैठे होंगे और वहीं से अपना
स्नेह और आशीर्वाद हमें दे रहे होंगे!
1
जीवन मेरा
हर सुख ही मेरा
आपकी देन!
2
दैवीय बाँध
मेरी आत्मा में बसा
आपका प्यार!
-अनिता
ललित
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