डॉ0
सुरंगमा यादव
1
विकल
पल
आतुर
आलिंगन
ढूँढते हर पल
प्रिय
सान्निध्य
ओह!जग
बंधन
अधरों
पे क्रन्दन!
2
गहरी
रात
मन
में खिल रहा
नित
नव प्रभात
प्रिय
का साथ
सब
ओर उजास
नैनों
में मृदु हास
3
तुम्हारा
साथ
पंख
लगे हजारों
मन
के एक साथ
दूर
गगन
आया
कितना पास
हो
गयी पूरी आस
4
कोई
हो ऐसा
हर
ले जो मन के
सारे
दुःख- संताप
अश्रुजल
में
खिला
दे जो पल में
शत
प्रेम कमल
5
घटाओ
सुनो
!
अभी
न बरसना
राह
में है कहीं वो
व्यग्र
होके मैं
द्वार
पर हूँ खड़ी
लगाना
मत झड़ी
-0-
10 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना सुरंगमा जी, खूब छलकी प्रेम की गागर!
नैनों में मृदु हास
दूर गगन आया कितने पास
अश्रुजल में खिला दे....प्रेम कमल!
बहुत बढ़िया!!
शानदार रचना।
कहीं प्रेम भाव तो कहीं तड़फ, इंतजार सब कुछ है।
पधारें - शून्य पार
बहुत ही बहतरीन सृजन , मन में उतरती हुई ।
हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर उत्कृष्ट सृजन।बधाई
आप सभी का हार्दिक आभार!
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण ! बहुत बधाई सुरंगमा जी!
~सादर
अनिता ललित
वाह,बेहतरीन सृजन।बधाई
वाह वाह डॉ.सुरंगमा जी प्रेम रस में सने बसे इतने सुंदर सेदोका रचे हैं कि मन भाव विभोर हो गया हार्दिक बधाई स्वीकारें |
मनभावन सुंदर सेदोका सुरंगमा जी ...
हार्दिक अभिनंदन
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण सृजन....बहुत बधाई सुरंगमा जी!
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