डॉ0 सुरंगमा यादव
1
चहुँओर है
कोलाहल कलह
तू मलय वात-सा,
ताप हर ले
आषाढ़ घन बन
सींच दे क्लांत मन
2
झूम-झूम बरसें
प्रेमी मन तरसे,
कोई न जाने
बादल संग नैना
बरसें दिन-रैना
3
तुम्हारे लिए
खुला मन का द्वार
जन्म-जन्मान्तर से,
संचित प्रेम
वार दूँ तुम पर
आओ तो प्रियवर!
4
सावनी-तीज
नेह पी का बरसा
मन आँचल भीगा,
प्यार का रंग
ऐसा करे कमाल
मेंहदी दूनी लाल।
5
हवा का दर्द
दूर तलक कोई
चले जो हमदर्द,
ढूँढते बीते
कितने युग-कल्प
ले जो प्रेम संकल्प ।
6
छाया; रामेश्वर काम्बोज ;हिमांशु' |
शाम उदास !
कहने को कितना है,
सुनने वाला कौन?
दूर व पास
जीवन- पथ पर
खोया हास-विलास
7
गोधूलि बेला
शिथिल हुआ सूर्य
बढ़ रही थकान,
तम के पग
कर रहे प्रशस्त
निशा सखी का पथ!
7 टिप्पणियां:
सुरंगमा जी बहुत खूब!मेहंदी दूनी लाल!निशा सखी का पथ!हवा का दर्द!!....बहुत बढ़िया।
सुंदर सृजन सुरंगमा जी ... सभी सेदोका मनभावन
हार्दिक अभिनंदन
सभी सेदोका खूसूरत,मनमोहक।बधाई
बढ़िया सेदोका... बधाई सुरंगमा जी।
बहुत खूबसूरत, बधाई सुरंगमा जी.
वाह! सभी सेदोका लाजवाब! हार्दिक बधाई सुरंगमा जी!
~सादर
अनिता ललित
सभी सेदोका बहुत पसंद आए, मेरी बधाई
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