माहिया - सुदर्शन रत्नाकर
1
लो सावन आया है
बिन माँगे ही वो
सौग़ातें लाया है ।
2
जब मेघ बरसता है
मन साँवरिया से
मिलने को तरसता है ।
3
बूँदें जब गिरती हैं
प्यास बुझाने को
आकुल हो फिरती हैं
4
सावन तो आया है
मेघ नहीं बरसे
जीवन मुरझाया है ।
5
नभ में मेघा छाए
नाचे मन
हर पल
तुम जो अँगना आए
-0-