माहिया :
नोक-झोंक माहिया का विशिष्ट गुण हुआ करता था , जो जीवन की आपाधापी में गुम होता गया। डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा जी ने अपने माहिया में इसे जीवन्त कर दिया है। -सम्पादक
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
ये तय इस बार किया
मैं जाती मैके
घेरो घर-बार पिया।
2
भर चटनी की बरनी
सखियों संग मुझे
थोड़ी मस्ती करनी।
3
सब ढंग निराले हैं
अफसर तुम सजना
छुट्टी के लाले हैं ।
4
तू है मन की भोरी
खूब थका लेंगी
चंचल सखियाँ तोरी ।
5
दिल को दिल भाएँगे
दिन दो-चार रुको
दोनों मिल आएँगे ।
6
ग़म से पहचान नहीं
तुम बिन अब सजनी
जीना आसान नहीं ।
7
मत बात करो खोटी
तुम घूमो जग में
मैं घर सेकूँ रोटी ।
8
सीधा- सा काम करो
टिकट अभी मेरा
बनवा आराम करो ।
9
ये राग पुराने हैं
बाँध मुझे रखना
सब खूब बहाने हैं ।
10
क्या बात करो गोरी ?
कटतीं ना सच में
तुम बिन रतियाँ मोरी ।
11
देखो मनुहार करूँ
तुम बिन चैन नहीं
बस तुमसे प्यार करूँ ।
12
दुखतीं अँखियाँ मेरी
फोन मुआ तेरा
कितनी सखियाँ तेरी ।
13
कितना बतियाते हो
क्या जानूँ कित से
दाना चुग आते हो ।
14
मैं तो अब जाऊँगी
कुछ दिन जी भरकर
मिल, वापस आऊँगी ।
15
जपना मीरा, राधा
हो आजाद पिया
सब दूर हुई बाधा ।
16
छोड़ो भी ये ताना
ओ सजनी प्यारी
जल्दी घर आ जाना ।
17
हूँ चाँद, चकोरी ने
फोन किया देखो
मैके से गोरी ने ।
18
कैसे हैं हाल पिया
महँगी है रोटी
गलती क्या दाल पिया ।
19
मत फिकर करो मेरी
दे जाती थाली
दिलदार सखी तेरी ।
20
है बात न जल्दी की
मुझको क्या चिंता
आटे या हल्दी की ।
21
कैसे नादान पिया
फैटी फ़ूड तुम्हें
देता नुकसान पिया।
22
मैं टिकट कटाती हूँ
साँझ ढले सजना
वापस घर आती हूँ ।
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