भोर की बेला
सुदर्शन रत्नाकर
भोर की बेला
धूसर आसमान
सोए हैं पक्षी
थका -थका सा चाँद
मंद पवन
तारों का रंग फीका
दुल्हन रात
कैसे रंग निराले
लुटा शृंगार
आँसुओं का सैलाब
भीगी धरती
गुपचुप कलियाँ
सूनी डगर
सन्नाटा है पसरा
ओर न छोर।
प्रकृति नहीं हारी
करवट ली
बदल गया सब
उगा सूरज
नभ नील झील में
बिखरे रंग
जाग उठा जीवन
जग- ऑगन
कलरव करते
उड़े विहग
खिल गईं कलियाँ
शीतल हवा
छू रही तन -मन
आलस्य छोड़
उठ गया इन्सान
नव स्फूर्ति
आह्वान।
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17 टिप्पणियां:
वाह, सुंदर भाव, प्रवाह पूर्ण भाषा। अति सुंदर !
नवस्फूर्ति उत्पन्न करता सुंदर चोका। बधाई सुदर्शन दी।
नवस्फूर्ति उत्पन्न करता सुंदर चोका। बधाई सुदर्शन दी।
बहुत बहुत सुंदर । बहुत बेहतरीन
हार्दिक बधाई
बहुत बहुत सुंदर । बहुत बेहतरीन
हार्दिक बधाई
अनिता,भावना, सत्याजी चोका पसंद करने के लिए आप सब का हार्दिक आभार
आदरणीया सुदर्शन दीदी बहुत सुंदर चोका हार्दिक बधाई।
धन्यवाद सुनीता।
खूबसूरत चोका , प्रकृति का अनोखा चित्रण । बधाई सुदर्शन जी ।
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार विभाजी।
प्रातकालीन प्रकृति का सुंदर ह्रदयगम्य चित्रात्मक दृश्य प्रस्तुत करता(मोहक सुप्त,अर्धसुप्त वा जागृत चर-अचर की रील सी खोलता)चोका बहुत ही सुंदर व कोमल लगा सुदर्शन जी बधाई|
पुष्पा मेहरा
बहुत सुन्दर ,सरस चोका ,हार्दिक बधाई दीदी |
प्रकृति का सुन्दर वर्णन करता मन को छु जाने वाला चोका है |सुदर्शन जी को हार्दिक बधाई |
बहुत सुंदर, मनमोहक चोका सुदर्शन जी...बहुत-बहुत बधाई।
अति सुन्दर चौके बधाई रत्नाकर जी
प्रकृति-प्रेमिका आदरणीय सुदर्शन दीदी को बहुत बहुत बधाई
हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत मनभावन चोका है | मेरी बधाई स्वीकारें...|
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