बुधवार, 21 अगस्त 2019
गुरुवार, 15 अगस्त 2019
880
कमला निखुर्पा
ढूँढे बहिन
भैया की कलाइयाँ
नेह की डोर
बाँधती चहूँ ओर
छूटा पीहर
बसा भाई विदेश
सूना है देश
आओ घटा पुकारे
राह निहारे
गाँव की ये गलियाँ
नीम की छैयाँ
गर्म चूल्हे की रोटी
गागर-जल
आँगन की गौरैया
बहना तेरी
लगे सबसे न्यारी
सोनचिरैया
पुकारे भैया-भैया !!
सज-धजके
रँगी चूनर लहरा
घर भर में
पैंजनिया छनका
बिजुरी बन
रोली-तिलक
माथे लगा अक्षत
भाई दुलारे
डबडबाए नैन
छलक जाए
पाके एक झलक
जिए युगों तलक !!!
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बुधवार, 14 अगस्त 2019
शनिवार, 3 अगस्त 2019
878
डॉoसुधा गुप्ता
1
चित ; ज्योत्स्ना प्रदीप की माताश्री |
बाँस की पोरी
निकम्मी खोखल मैं
बेसुरी, कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई बाँसुरी।
2
तेरा ही जादू
दूध पीना भूला है
गैया का छौना
चित्र-से मोर, शुक
कैसा ये किया टोना।
3
मिली झलक
लगी नहीं पलक
रूप सलोना
श्याम ने किया टोना
राधिका भूली सोना।
4
बाँस कि पोरी
बनी रे मुरलिका
श्याम दीवानी
राधिका रो-रो मरे
चुराए, छिपा धरे।
5
कान्हा क्या गए
राधा हुई बावरी
कैसी विकल
सदा गीला आँचल
सूखे न किसी पल।
6
ज्वर से तपे
जंगल के पैताने
आ बैठी धूप
प्यासा बेचैन रोगी
दो बूँद पानी नहीं।
7
अपने भार
झुका हरसिंगार
फूलों का बोझ
उठाए नहीं बने
खिले इतने घने।
8
पाँत में खड़े
गुलमोहर सजे
हरी पोशाक
चोटी में गूँथे फूल
छात्राएँ चलीं स्कूल।
9
सुन रे बच्चे
सपने तेरे बड़े
नयन छोटे
आकाश तेरा घर
ले उड़ान जीभर
10
सुख का साथी
घर-परिवार
दु:ख का साथी
सिर्फ़ अकेलापन
किसे खोजे पागल।
11
अकेली चली
दु:खों के दरिया में
आँसू की कश्ती
खुद ही मँझधार
खुद ही पतवार।
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