कमला निखुर्पा
ढूँढे बहिन
भैया की कलाइयाँ
नेह की डोर
बाँधती चहूँ ओर
छूटा पीहर
बसा भाई विदेश
सूना है देश
आओ घटा पुकारे
राह निहारे
गाँव की ये गलियाँ
नीम की छैयाँ
गर्म चूल्हे की रोटी
गागर-जल
आँगन की गौरैया
बहना तेरी
लगे सबसे न्यारी
सोनचिरैया
पुकारे भैया-भैया !!
सज-धजके
रँगी चूनर लहरा
घर भर में
पैंजनिया छनका
बिजुरी बन
रोली-तिलक
माथे लगा अक्षत
भाई दुलारे
डबडबाए नैन
छलक जाए
पाके एक झलक
जिए युगों तलक !!!
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18 टिप्पणियां:
बेहद ख़ूबसूरत
सुन्दर, अति सुंदर!
वाह! बहुत सुंदर...
मन भर आया, बहुत सुंदर!
बहुत ही भावपूर्ण सुंदर चोका है |
पुष्पा मेहरा
बहुत मनभावन चोका है आदरणीय कमला जी।
रक्षाबंधन की बधाई, शुभकामनाएँ ।
बहुत मनभावन चोका है आदरणीय कमला जी।
रक्षाबंधन की बधाई, शुभकामनाएँ ।
वाह
बहुत सुंदर, मन को छू गया।
वाह! बहुत खूब कमल जी!
धन्यवाद सभी का
भावपूर्ण चोका।बधाई कमला जी।
भावपूर्ण, बहुत बढ़िया
सुंदर रचना
हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत ही सुंदर , भावपूर्ण सृजन
बहुत भावपूर्ण और सुंदर...बहुत बधाई
अति सुंदर,भावपूर्ण सृजन.....बधाई कमला जी!!
मन को छू गया चोका, बहुत बधाई कमला जी.
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