मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

महकाऊँ फिजा

1-रचना श्रीवास्तव
1
दूधिया पानी
झरना बन बहे
ऋतु नहा
हवा भिगो पर
नमी से भर जाए 
2
फूलों के बक्से
कैद खुशबू सोचे-
खोल दे हवा
जो  बंद  आवरण
महकाऊँ फिजा मैं
3
चाँद के घर
तारों का है पहरा
डरी चाँदनी
परदा हटा  सोचे-
धरा पे जाऊँ कैसे ?
-0-

2-रेनु चन्द्रा
1
कश्ती प्यार की
मिला साथ तुम्हारा
मोहित मन
फूलों ने वादियों में
सतरंग बिखेरा ।  
2
झीलों में अक्स
पर्वतों का है घेरा
रात चाँद पे
नेह में भीगा हुआ
बादलों का है डेरा ।
-0-

नैनों में प्रीत किये

1-डॉ सरस्वती माथुर
1
नींदे पीकर
रात में जुगनू से   
डोलते रहे
नैनो में प्रीत लिये
रँगीले से सपने l
2
मन अकेला
यादों की कश्ती लेके
दूर निकला
कुँवारे सपने ले
नैन कोख से जन्मा l
-0
2-सविता अग्रवाल "सवि"
1
गुंजित होते
प्रमुदित सुनते
मंगल गान
मधुरस बहता
बेसुध होता मन  .
2
काव्य सृजन
कल्पना की उड़ान
प्रेरित मन
अंतर है आकुल
वाणी हुई चंचल।

-0-

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

तन हो सुरभित

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हे प्रभु मेरे
कुछ ऐसा कर दे !
दु:ख मीत के
सब चुनकर तू
मेरी झोली भरदे !
2
व्यथा की साँसें
कर देना शीतल
नयन खिलें
सब ताप मिटाके
करना आलिंगन ।
3
नई भोर-सा
तन हो सुरभित
पोर-पोर में
भरें गीतों के स्वर
खिलें प्रेम-अधर ।

-0-

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

अपनों की सौगाते!

ज्योत्स्ना प्रदीप
1
कुछ ऐसे मंज़र थे
पुष्पों  के द्वारे
अपनों के खंजर थे !
2
आँसू के दिन-रातें
देखो तो इनको
अपनों की सौगाते!
3
वो क्या कर जाते है
शीशे के घर पे
पत्थर बरसाते हैं!
4
अपने ये काम करें
खुद के ही घर की
खुशियाँ नीलाम करें
5
मापा किसने मन को
इस युग में तो बस
सब कुछ माना तन को। 
6
बेजानों में भी मन,
देखा दिल इनका,
पत्थर में क़ैद अगन।
7
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।

-0-

तीन रंग

1 -ऋता शेखर 'मधु'
            1
            हृदय -गंगोत्री
            प्रेम की गंगा बही
            धारा पावन
            समेट रही छल
            जीत रही है बल।
            2
            मन वैरागी
            स्मृतियों का कानन
            करे मगन
            चुनो सुहाने पल
            महकेगा आँचल।
            3
            लेखनी हंस
            मन मानसरोवर
            शब्दों के मोती
            चुगता निरंतर
            खोलता रहा अंतस् ।
            4
            सूरज हँसा
            रश्मि गई बिखर
            जागा जीवन
            खुशियाँ हैं निखरी
            दिन लगे प्रखर।
            5
            धरा की नमी
            नभ -दृग में बसी
            छेड़ो न उसे
            वो बरस जो जाए
            भीगे दिल सभी का।
            6
            जागे अम्बर
            चाँद चाँदनी- संग
            पल शीतल
            सूरज से छुपाए
            राग मधुर गाए।
            7
            तेज आँधी थी
            बुझा पाई न दिया
            ऐसा लगा है-
            दुआ सच्चे दिल की
            रब ने कुबूल की।
            8
            चमकी लाली
            प्राची ने माँग भरी
            ले अँगड़ाई
            अरुण वर उठा
            कौंधा नव जीवन।
            9
            क्या करे कोई
            एक ओर हो खाई
            दूजी में कुआँ
            बढ़ाना पग-नाप
            पार हो जाना भाई।
            10
            जीवन- रेल
            भागती सरपट
            कई पड़ाव
            साथ हैं मुसाफिर
            अलग हैं मंजिलें।
            -0--
2-शशि पाधा
1
खनखनाती
धरती कलाई में
हरी चूड़ियाँ
मुस्कुराता वसंत
आनन्दित दिगंत ।
2
मलयानि
चहुँ ओर बिखेरे
चन्दन- गंध 
मदमाती धरती
थिरक रहे अंग ।
3
अम्बुआ-डार
बौराई कोयलिया
कुहुके, गाए
इठलाई बगिया
वसंत घर आए ।
-0-
3-रचना श्रीवास्तव
1
लूट ली आस्था
घर्म के नाम पर
प्रभु दर्शन
मिले अब  दाम पे
यही कलयुग है  ।
2
दोस्ती -सीवन
चुपचाप उधेड़े
अपना दोस्त
काटे नेह की डोर
कलयुग की लीला ।
3
छीना किससे
निवाला किसका है ?
क्या मतलब?
भरा घर अपना
बस चिंता इतनी

-0-

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

बहुरुपिया

 1- जेनी शबनम
1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
3
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
5
साथ हमारा
धरा-नभ का नाता 
मिलते नहीं 
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !
 -0-
2-पुष्पा मेहरा 
1
ओ !  मेरे दुख
 कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा  मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
2
 मोह का जादू
 सिर चढ़ बोलता
 संचित सारा -
 सब्ज़ - बाग दिखाता
 मन को भरमाता ।

 -0-

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

मन की सेज

डॉ अनिता कपूर
1
सोई यादों के
करवट लेते ही
चरमराई
फिर मन की सेज
मुट्ठी में बंद रेत ।
2
आकाशबेल
शतरंज का खेल
सृष्टि की आँख
साफ देख रही है
ब्रह्मांड का ये खेल।
3
सिद्ध तो करो
देह और प्राण का
स्‍पर्श का रिश्‍ता
फिर लिखो अपनी
अलग परिभाषा ।
4
ओस लिपटी
और हरसिंगार
की खुशबू में
रची बसी वो बातें
काते है मन मेरा।
5

कुछ लकीरें
किस्मत ने मिटाईं
कुछ लकीरें
जिंदगी ने कुरेदी

हथेली रही खाली ।

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

यादों के ये बादल

डॉ सरस्वती माथुर
1
मन मेरा है घायल
 छाये आँखों में
यादों के ये  बादल
2
डाली- डाली डोले
यादों की कोयल
मन की पीड़ा खोले
3
मन मेरा डोल रहा
 मन की बाते वो
देखो  ना  खोल रहा
4
चंपा  संग चमेली
तेरी यादें तो
 मेरे मन से खेलीं
-0-

       

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

बीते कल की बातें

शशि पाधा
1
आस- निरास
बीते कल की बातें
आओ अब  सुना दें,
नूतन गान
लिखें नव विधान
सुख से पहचान
2
गत- विगत
चला अंगुलि थाम
भावी के पथ पर,
दीप स्तम्भ- सा
बाबा यूँ तर्जनी से
दिखाए सही बाट
3
कुछ खो  गया
कटघरे में बंद
घनेरे  अँधेरों में
अक्सर देखा -
यादों की झिर्रियों से
खामोश बीता कल

-0-

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

तेरी इबादत में

मंजु गुप्ता
1
जिस वक्त भी
तेरी इबादत में
हाथ उठाए
तेरे नूर से रुह
मेरी एक हो गई
2
लौटा सुहाग
खुशी की लाली छाई
जल गई थी
प्रेम बाती  जीने की
महका हर पल
3
वक्त के काँटें
तानों के जख्म बन
जब भी  दिए
हर हाल पीर को
मैंने गाथा में रचा

-0-