ज्योत्स्ना ‘प्रदीप’
1
कुछ ऐसे मंज़र थे
पुष्पों
के द्वारे
अपनों के खंजर थे !
2
आँसू के दिन-रातें
देखो तो इनको
अपनों की सौगाते!
3
वो क्या कर जाते है
शीशे के घर पे
पत्थर बरसाते हैं!
4
अपने ये काम करें
खुद के ही घर की
खुशियाँ नीलाम करें ।
5
मापा किसने मन को
इस युग में तो बस
सब कुछ माना तन को।
6
बेजानों में भी मन,
देखा दिल इनका,
पत्थर में क़ैद अगन।
7
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।
-0-
10 टिप्पणियां:
सभी रचनाएँ उत्कृष्ट लगी
बधाई
एक-एक माहिया बहुत बढ़िया ज्योत्स्ना प्रदीप जी....बधाई !
bahut bhaavpuurn sundar maahiyaa hain aapake ...ek se badhakar ek ..
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई। ...laajavaab ,,,haardik badhaaii !!
बहुत ही सुन्दर माहिया ! सभी एक से बढ़कर एक !!
हार्दिक बधाई आपको ज्योत्स्ना प्रदीप जी !!!
~सादर
अनिता ललित
manju ji,krishnaji,jyotiji,anitaji...protsahit karne ke liye hridya se aabhaar
bohot hi sarthak mahiye likhe hai jyotsna pradeep ji aapne....khaskar ye to bohot umda hai...
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।
bohot hi sarthak mahiye likhe hai aapne jyotsana pradeep ji....visheshkar ye mann ko choo gaya....
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।
bejanon men bhi man,dekha dil inaka ,pathar men bhi kaid agan.
bilkul satya hai. jyotsna ji apako badhai sabhi mahiya bahuthi achhe likhe hain.
pushpa mehra.
puuushpa ji,shivikaji...hridy se aabhaar ...hausla badhane ke liye
कुछ ऐसे मंज़र थे
पुष्पों के द्वारे
अपनों के खंजर थे !
आँसू के दिन-रातें
देखो तो इनको
अपनों की सौगाते!
दिल को तकलीफ होती है, पर ज़िंदगी की हकीकत है ये...| अपने ही सबसे ज्यादा दर्द देते हैं...|
बधाई...|
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