मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

बहुरुपिया

 1- जेनी शबनम
1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
3
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
5
साथ हमारा
धरा-नभ का नाता 
मिलते नहीं 
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !
 -0-
2-पुष्पा मेहरा 
1
ओ !  मेरे दुख
 कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा  मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
2
 मोह का जादू
 सिर चढ़ बोलता
 संचित सारा -
 सब्ज़ - बाग दिखाता
 मन को भरमाता ।

 -0-

7 टिप्‍पणियां:

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सुन्दर ताँका !
हार्दिक बधाई जेन्नी शबनम जी, पुष्प मेहरा जी !

~सादर
अनिता ललित

Anupama Tripathi ने कहा…

जेन्नी जी व पुष्पा जी के भावप्रबल तांका ....!!बहुत सुंदर !!

Jyotsana pradeep ने कहा…

jenny ji ,pushpaji anokhi kalpna sanjoye bhavpradhan taanke ...badhai

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
बहुत सुन्दर...बधाई...|

ओ ! मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
मर्मस्पर्शी...| बधाई...|

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
बहुत सुन्दर...बधाई...|

ओ ! मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
मर्मस्पर्शी...| बधाई...|

ज्योति-कलश ने कहा…

"मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग"....aaj ke katu saty kii sundar prastuti Jenni ji ..bahut khoob

"ओ ! मेरे दुख" ..sundar prstuti Pushpa ji haardik badhaaii !

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका पुष्पा जी -

ओ ! मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।

मेरी रचना को पसंद करने के लिए आप सभी का आभार!