1- जेनी शबनम
1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
3
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
5
साथ हमारा
धरा-नभ का नाता
मिलते नहीं
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !
-0-
2-पुष्पा मेहरा
1
ओ !
मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर
बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़
लाया ।
2
मोह का जादू
सिर चढ़ बोलता
संचित सारा -
सब्ज़ - बाग दिखाता
मन को भरमाता ।
-0-
7 टिप्पणियां:
सुन्दर ताँका !
हार्दिक बधाई जेन्नी शबनम जी, पुष्प मेहरा जी !
~सादर
अनिता ललित
जेन्नी जी व पुष्पा जी के भावप्रबल तांका ....!!बहुत सुंदर !!
jenny ji ,pushpaji anokhi kalpna sanjoye bhavpradhan taanke ...badhai
1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
बहुत सुन्दर...बधाई...|
ओ ! मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
मर्मस्पर्शी...| बधाई...|
1
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
बहुत सुन्दर...बधाई...|
ओ ! मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
मर्मस्पर्शी...| बधाई...|
"मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग"....aaj ke katu saty kii sundar prastuti Jenni ji ..bahut khoob
"ओ ! मेरे दुख" ..sundar prstuti Pushpa ji haardik badhaaii !
बहुत सुन्दर ताँका पुष्पा जी -
ओ ! मेरे दुख
कहाँ बिठा लूँ तुझे !
निष्ठुर बड़ा
तेरा मन न भरा
जो पतझड़ लाया ।
मेरी रचना को पसंद करने के लिए आप सभी का आभार!
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