सेदोका में भीगा मन मल्हार गाए
(मन मल्हार गाए-सेदोका संग्रह-सुदर्शन
रत्नाकर)
डॉ. पूर्वा शर्मा
जापानी विधाओं का सृजन भी आधुनिक
हिन्दी साहित्येतिहास का, विशेषतः आधुनिक हिन्दी काव्य की विकास यात्रा का एक
महत्त्वपूर्ण अध्याय है। पिछले एक-डेढ़ दशक में तो इस सृजन क्षेत्र में गुणात्मक
वृद्धि हुई है। हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका जैसी जापानी काव्य शैलियों को हिन्दी जगत में
विशिष्ट स्थान एवं महत्त्व
दिलाने वाले प्रमुख सृजनात्मक प्रतिभाओं में सुदर्शन रत्नाकर का नाम शुमार है।
हाइकु एवं ताँका के साथ-साथ 5-7-7-5-7-7 क्रमशः वर्णों की छ पंक्तियों की कविता
सेदोका पर भी इस वरिष्ठ कवयित्री की कलम बराबर चलती रही है। हाल ही में प्रकाशित उनके
‘मन मल्हार गाए’ संग्रह में सेदोका शैली की कुल 456 रचनाएँ संगृहीत है। प्रस्तुत सेदोका
संग्रह में कवयित्री की रागात्मक संवेदनाओं के साथ-साथ सामाजिक जीवन के यथार्थ
चित्रों को हम बखूबी देख सकते हैं।
कवयित्री के शब्दों में – “यह अद्भुत
एवं दिव्य दृश्य देखकर भला कैसे अपने मन के भावों को व्यक्त करने से रोक पाती।
शब्द स्वयं मन से निकल, भावों की डोर से गुँथते गए और माला बनती गई।....... प्रकृति
के विभिन्न उपादान मन को खींचते गए। मन मल्हार गाता रहा।..... पर ऐसा क्यों होता
है ! खुशी के साथ दिल के किसी कोने में पीड़ा भी छिपी रहती है और यह पीड़ा है, जो दीन-दुखियों की विवशता और नारी की
स्थिति को देखकर होती है। धूप-छाया - से रिश्तों के रंग, मन में बसी अच्छे-बुरे पलों की यादें, समाज में व्याप्त समस्याएँ और इन
समस्याओं को सुलझाने का प्रयास विचारों की दुनिया के माध्यम से किया है।”(पृ. 12)
वर्ण्य विषय की दृष्टि से प्रस्तुत
संग्रह की सेदोका रचनाओं को कवयित्री ने तीन शीर्षकों – 1) प्रकृति के रंग 2) रिश्तों
के रंग एवं 3) विविध के अंतर्गत रखा है।
विषय की दृष्टि से प्रस्तुत संग्रह
में प्रकृति चित्रण, रिश्तों का ताना-बाना, नारी चेतना, वृद्ध जीवन, प्रेम, समसामयिक-समाजिक
परिस्थितियाँ जैसे – राजनीति, गरीबी, भ्रष्टाचार आदि के यथार्थ चित्रण के साथ जीवन
दर्शन से संबंधित सेदोका नज़र आते हैं। संग्रह में वैविध्य है किन्तु प्रकृति चित्रण
की प्रधानता कवयित्री के प्रकृति-प्रेम को प्रतिबिंबत करती है।
प्रकृति को देखने की कवयित्री की
अपनी ही दृष्टि है, जो इस सुन्दर प्रकृति को और अधिक रमणीय बनाने में सहायक है। संग्रह
का पहला ही सेदोका पाठक के हृदय पर अपनी छाप छोड़ जाता है –
अथाह जल / दूर तक फैलाव / अनमोल
ख़ज़ाना
सब कुछ है / सागर तेरे पास / फिर भी
तू उदास। [1]
प्रकृति के सौन्दर्य विशेषतः सागर और
उसके रहस्य को उजागर करते कुछ सेदोका इस प्रकार हैं –
(1) सिन्धु-वक्ष पे / दूध-केसर घुली / नाचती
हैं लहरें
सुबह-शाम / माथे पर लगाता / नभ जब
बिंदिया। [5]
(2) जन्मों से नाता / तुझसे है सागर / टूटेगा
कैसे भला
तुझसे जन्मी / तुझमें ही विलीन / अस्तित्व
लहरों का। [10]
नाना प्रकार के पुष्पों से हमारी
धरती भरी पड़ी है। जैसे – हरसिंगार, गुलमोहर, रात रानी, सूरजमुखी, रजनीगंधा, गुलाब,
गेंदा, गुलदाउदी, कमल, बोगनबेलिया, चंपा-चमेली आदि का सुन्दर चित्रण संग्रह की
शोभा बढ़ाने में सफल है। प्रकृति का सौम्य रूप हमें जितना लुभाता है उसका भीषण रूप
कई बार हमारे मन को भयभीत भी कर देता है। बिजली की चमक, गर्मी का प्रंचड रूप, आँधी-तूफ़ान-बादल
के फटने से तहस-नहस होतीं ज़िंदगियों से संबंधित सेदोका भी संग्रह में संकलित हैं। बसंत
एवं विभिन्न ऋतुओं का बेहतरीन चित्रण तो कवयित्री ने किया ही है लेकिन शीर्षक ‘मन
मल्हार गाए’ वर्षा ऋतु का मनोहर चित्रण करने में सफल हुआ है –
वर्षा की बूँदें / रिमझिम बरसें / संगीत
सुनाती हैं
धरा हर्षाती / झूम उठी लताएँ / मन
मल्हार गाए। [95]
‘रहिमन धागा
प्रेम का.....जुरे गाँठ परि जाय’ – इस दोहे के माध्यम से रहीम बहुत गहरी बात कह गए। इसी तरह
का स्वर सुदर्शन जी के सेदोका ‘उलझे धागे....कठिन सुलझाना’ (क्र. 231) में भी
सुनाई पड़ता है। रिश्तों के महत्त्व के अंतर्गत माता-पिता, बहन-बेटी आदि रिश्तों से
संबंधित कई सेदोका इस संग्रह में देखे जा सकते हैं। पिता के महत्त्व को लेकर एक मर्मस्पर्शी
सेदोका देखिए –
शीतल छाया / बरगद के पेड़;सी / मिली जीवनभर
पिता का हाथ / छूटा जब सिर से / बिखर
गया मन। [195]
कवयित्री की जीवन दृष्टि भी गज़ब की
है। उन्होंने जीवन के विविध पहलुओं को बड़ी कुशलता से अपने काव्य में प्रस्तुत किया
है। प्रकृति के माध्यम से बड़ी सहजता से उसे पाठकों के समक्ष रख (सेदोका क्र.- 125)
पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इसी के साथ संग्रह के कुछ सेदोका हमारे समाज
में, हमारे आसपास चल रहीं गतिविधियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करवाने में सफल हुए
हैं। वृद्ध जीवन, मजदूरी, गरीबी, राजनीति एवं भ्रष्टाचार के ज़ाल में फँसे आमजन का मार्मिक
चित्रण भी सेदोका में दिखाई देता है –
(1) अधूरे वस्त्र / सरदी का क़हर / धरती
का बिछौना
देखता रहा / रात भर सपना / रोटी-संग
चाय का। [411]
(2) खलिहानों में / पनपी राजनीति / पिसता
है किसान
परिश्रम से / उपजाता अनाज / खाते हैं
बेईमान। [456]
दुःख, तकलीफ़ें, कठिनाइयाँ तो कदम-कदम
पर रास्ता रोके खड़ी है लेकिन उनका मुकाबला करना और सकारात्मक दृष्टिकोण से आगे
बढ़ते जाना ही ज़िंदगी जीने के लिए आवश्यक है। डूबता हुआ सूर्य भी यह सन्देश दे जाता
है कि कल वह फिर से आएगा और कुछ नया लाएगा - ऐसे ही आशावादी स्वर से कवयित्री का
काव्य ओत-प्रोत है।
प्रेम का जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण
स्थान है। कवयित्री ने प्रेम की अनुभूति को सीधे-सीधे न कहकर काव्यात्मक रूप में
कुछ इस तरह पिरोया है –
लहरों-संग / लहरें बन जाते / लहरें
ज्यों सागर
तुम और मैं / मैं तुझमें समाती / तुम
मेरे हो जाते। [242]
प्रेम की उपादेयता मनुष्य के लिए
सबसे ज्यादा है लेकिन प्रेम का सबसे सौम्य एवं सात्त्विक रूप तो प्रकृति में ही प्राप्त
हो सकता है –
दूर से मिले / गगन और धरा / अधूरा है
मिलन
पर संतुष्ट / न ही गगन झुका / न धरती
ने छुआ। [22]
प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों की काव्यात्मक
प्रस्तुति में कवयित्री सफल हुई है। प्रकृति के आलंबन, उद्दीपन, उपदेशात्मक,
रहस्यात्मक एवं नाम परिगणनात्मक आदि रूपों के चित्रण से सेदोका सहज बन पड़े हैं लेकिन
मानवीकरण की छटा संग्रह की कविताओं में व्याप्त है।
उतरी धूप / शर्माती, सहमी-सी / घर की मुँडेर से
छुआ बदन / भर गई तपन / मिट गई थकन। [45]
कुछ प्राकृतिक बिम्ब जैसे–दृश्य,
स्पर्श, ध्वनि बिम्ब आदि बहुत सुन्दर बन पड़े हैं –
नहाने आईं / सागर के जल में / दिनकर-रश्मियाँ
डुबकी लगा / रंग दिया सागर / अपने ही
रंग में। [18]
कुछ अनूठे विशेषणों जैसे – अल्हड़ नार,
पगली बूँदे, जादूगरनी नन्हीं वर्षा की बूँदें, बाल रवि आदि के सुन्दर प्रयोग भी
सेदोका में देखने को मिले हैं। कवयित्री का सूक्ष्म पर्यवेक्षण और कल्पनाशीलता का अनोखा
संगम संग्रह में अनेक स्थानों पर (सेदोका क्र.- 16, 72, 86, 94) देखने को मिलता है।
कवयित्री ने नारी जीवन की व्यथा-कथा,
उनकी समस्याओं एवं उन समस्याओं का समाधान आदि को अपने काव्य में प्रस्तुत किया ही
है, इसी के साथ मिथकों के माध्यम से समाज में हो रही गतिविधियों को भी उजागर करने
का प्रयास किया है, यथा –
गली-गली में / घूम रहे रावण / कहाँ-कहाँ
मारोगे
सीता का होता / रोज़ अपहरण / एक राम
क्या करे! [342]
मुहावरों/कहावतों का प्रयोग काव्य के
सौन्दर्य में चार चाँद लगा देता है। कवयित्री ने कई मुहावरे/कहावतें जैसे – जो
बोया, सो पाया है [362], दो जून रोटी मिले [415], बदलते हो /
गिरगिट से रंग [428],
चार
दिन चाँदनी / फिर अँधेरी रात [353] आदि का प्रयोग बड़ी ही कुशलता से किया है।
अनुभूति की प्रधानता एवं विषय
वैविध्य लिए प्रस्तुत संग्रह के उत्कृष्ट सेदोका पाठकों के दिल में अपना स्थान बनाने
में सक्षम हैं। ऐसे सुन्दर संग्रह के लिए कवयित्री को बधाइयाँ एवं साधुवाद।
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कृति : मन मल्हार गाए (सेदोका
संग्रह),
कवयित्री
: सुदर्शन रत्नाकर, मूल्य : 300 /-, पृष्ठ : 136, संस्करण : 2022, प्रकाशक : अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली