रश्मि विभा त्रिपाठी
एक सलाह
अगर मेरी मानो
तो जरा जानो
अपनी वह बात
क्यों जिसे सुन
मेरी आँखों से फूटी
पीर की धारा
यह जीवन सारा
वसीयत में
तुम्हारे नाम पर
मैंने क्यों लिखा
जिस- जिसको दिखा
हस्ताक्षर में
मेरी लिखावट का
पुख्ता निशान
उन सबकी शान
मिट्टी में मिली
तुमसे ही क्यों खिली
मुरझाए- से
मन में मौलसिरी
मुझपर से
फिर नजर फिरी
सारे जग की
तब भी क्यों न डरी
उमंगों से ही
सदा जो रही भरी
सुनते झरी
विछोह के दो बोल
सुनो! चाहो तो
देना गरल घोल
साँस- साँस में
परंतु वह बात
मेरे जीते जी
तुम्हें मेरी सौगंध
अधरों पर
फिर कभी न लाना
तुम्हीं को प्राण
माना।
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13 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर लिखा, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुन्दर... हार्दिक बधाई!
सुंदर एवं भावपूर्ण चोका! हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुंदर रचना
बधाई रश्मि जी
चोका प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक जी का हार्दिक आभार।
आप सभी स्नेहीजन की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर
बहुत सुंदर, हार्दिक बधाई रश्मि जी!
बहुत सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
वाह!!
बहुत सुंदर भावपूर्ण...
जिस- जिसको दिखा
हस्ताक्षर में
मेरी लिखावट का
पुख्ता निशान
उन सबकी शान
मिट्टी में मिली ।
सुनो! चाहो तो
देना गरल घोल
साँस- साँस में
परंतु वह बात
मेरे जीते जी
तुम्हें मेरी सौगंध
अधरों पर
फिर कभी न लाना
तुम्हीं को प्राण माना।
.. बहुत अच्छी प्रस्तुति
.... . जो प्राणों से प्रिय हो, यदि वह रूठता है ऐसा लगता है जग रूठ गया, प्राण सूख गए
बहुत सुन्दर चोका, बधाई रश्मि जी.
बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक बधाई
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