वह अंतिम रात
सुदर्शन रत्नाकर
हम दोनों की एक साथ वह अंतिम रात थी। तन जर्जर और मन शिथिल हो गया था, पर जिजीविषा शेष थी। डॉक्टर के अनुसार जीवन की साँसें केवल दो -तीन दिन की थी, पर अंत कभी भी हो सकता था।अस्थियों के साथ बीमारी ने आँखों, जिह्वा, दिमाग़ ,फेफड़ों को भी अपनी गिरफ़्त में ले लिया था। दिल धड़कता था और साँसें कठिनाई से आ रही थीं। पूरा शरीर उपकरणों के घेरे में था। सुइयाँ लगते -लगते शरीर छलनी हो गया था। खाने की इच्छा होती पर खा नहीं पाते। पीड़ा इतनी असहनीय कि आँखें छलक जातीं, पर मुँह से उफ़ तक नहीं। दो दिन आई.सी.यू में यही स्थिति रही। तीसरे दिन मन में एक इच्छा जागी। आई.सी.यू. से निकलकर कमरे में शिफ़्ट होने की, जिसे डाक्टर ने तुरंत मान लिया। वह अंतिम रात थी।साँस लेने में कठिनाई होने लगी। सिस्टर ने निब्लाइजर लगा दिया। साँस लेने में थोड़ी सुविधा हुई। बार बार यही स्थिति होती रही। लेटकर साँस लेने में कठिनाई होती। बैठने की कोशिश करते तो बैठा नहीं जाता। हाथ का सहारा देकर उठाती। क्षण भर बैठ पाते और फिर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर निढाल होकर लेट जाते।असहनीय पीड़ा और साँस लेने में तकलीफ़। पलंग के पाए पर सिर टिकाए कभी उनकी ओर देखती, उनकी पीड़ा को महसूसती। पर कर कुछ नहीं पाती। सारा शरीर शिथिल हो रहा था। हाथ की पकड़ ढ़ीली होती जा रही थी पर खुली आँखों में अब भी जीवन की आशा शेष थी। साँसों की डोर टूट रही थी सानिध्य धीरे-धीरे छूटता जा रहा था। हाथ अभी भी मेरे हाथ में था।और फिर सब कुछ ख़त्म। उस अंतिम रात के इतने क्रूर अंत को क्या कभी मैं भूल पाऊँगी।
लड़खड़ाती आवाज़ में वो शब्द, “मैं तुम्हारे दुख
को समझ रहा हूँ।” आज भी कानों में गूँजते रहते
हैं। पर बीते क्षणों को पकड़ नहीं पाती हूँ।
1
भूलते नहीं
बिताए तेरे संग
कल के पल।
2
तुम्हारी पीड़ा
चुभती है आज भी
उस रात की।
-0-सुदर्शन रत्नाकर , ई-29, नेहरू ग्राउंड ,फ़रीदाबाद 121001
-0-
कपिल कुमार
1
लिख के भेजे
तुमने प्रेम-पत्र
मैंने सहेजे
ज्यों इतिहास छात्र
सभ्यता-अवशेष।
2
छज्जे पे बैठ
चाँद देखते हुए
कभी तो लिखो
प्रेम में डूबी कोई
प्रेम- कलन विधि.
3
प्रेम-प्रमेय
सदा सिद्ध करती
प्रेम से प्रेम
घृणा-प्रेम बताती
है व्युत्क्रमानुपाती।
4
हम दोनों हैं
समझो गणित का
प्रेम-निर्मेय
संभव न ज्यों बिना
पटरी-परकार।
5
फिर से करें
बालकनी पे चढ़
पत्र-प्रतीक्षा
तकनीक ज्यों आई
प्रेम-मूल्य घटाया।
6
खो गए कहीं
हीर-राँझा के किस्से
किसको भेजें
लिख के प्रेम-पत्र
कबूतर ढूँढते।
7
प्रेम में डूबे
बालकनी पे देखें
ज्यों तोता-मैंना
मुझको याद आया
अपरिमित-प्रेम।
8
ऐसे टटोले
अलमारी में रखे
तुम्हारे पत्र
ज्यों पुरातत्वविद्
पुराने
अभिलेख।
9
प्रेम में डूबी
आँखें ढूँढती रहीं
अथाह-प्रेम
ज्यों पुरातत्त्ववेत्ता
अतीत का रहस्य।
10
प्रेम-दर्शन
द्वैत से परिबद्ध
मैं और तुम
प्रेम का अध्ययन
मन बना चंदन।
-0-
*(किसी भी समस्या का चरणबद्ध तरीके से समाधान निकालने की प्रकिया को अल्गोरिथम (Algorithm) / कलन विधि
कहते हैं।)
13 टिप्पणियां:
मार्मिक हाइबन, बेहतरीन ताँका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
बहुत ही सुंदर हाइबन, आपको हार्दिक शुभकामनाएं!
मेरे ताँका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद!
प्रेम की स्मृतियों को संजोये बहुत सुंदर ताँका। हार्दिक बधाई कपिल कुमार जी।
भीकम सिंह जी, कपिल कपिल कुमार जी , मेरा हाइबन पसंद करने के लिए हार्दिक आभार।
बेहद भावपूर्ण-मार्मिक हाइबुन। सुंदर ताँका।आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई
पीड़ा की अभिव्यक्ति का मार्मिक हाइबन एवं प्रेम को सहेजते बेहतरीन ताँका।सुदर्शन रत्नाकर जी एवं कपिल कुमार को बहुत बहुत बधाइयाँ।
अति सुन्दर।
प्रोत्साहित करने के लिए आप सबका हार्दिक आभार - सुदर्शन रत्नाकर
बहुत ही सुन्दर। हार्दिक शुभकामनायें।
मार्मिक हाइबन एवं बहुत ही सुन्दर ताँका...आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई।
बहुत ही भावपूर्ण हाइबन
सुदर्शन जी को बधाई
सुंदर ताँका के लिए कपिल जी को बधाई
बहुत भावुक हाइबन। रत्नाकर जी को बधाई।
भावपूर्ण ताँका के लिए कपिल जी को बधाई।
आदरणीया सुदर्शन दीदी जी, आँखें हैं नम, निःशब्द हैं हम! इतना करुण दृश्य ... जैसे सबकुछ नज़रों के सामने घटित हो रहा हो... बेहद मर्मस्पर्शी भावाव्यक्ति! आपको एवं आपकी लेखनी को नमन!
आदरणीय कपिल जी...सुंदर ताँका हेतु बहुत बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
आदरणीया सुदर्शन दीदी जी सच में मन भारी हो गया। इतनी मार्मिक अनुभूति को शब्द देना कितना मुश्किल रहा होगा। बहुत प्यार आपको। मन तो हो रहा कि गले लग जाऊं।
जीवन हिम्मत से जीने का नाम है। कितना सब्र ज़रूरी होता है। सब कुछ एकदम अप्रत्याशित।
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