सोमवार, 3 मार्च 2025

1211-हाइबन

 

1-नदी का दर्द / डॉ. सुरंगमा यादव

 


दरीनाथ धाम के लिए हम सब बदायूँ से सुबह सात बजे निजी वाहन से निकले। हल्द्वानी तक तो पहाड़ी और मैदानी रास्तों में अधिक अंतर पता न चला; परन्तु उसके बाद हम जैसे -जैसे ऊपर चढ़ते गए, पहाड़ काटकर बनाये ग गोल घुमावदार रास्ते रोमांच मिश्रित भय की अनुभूति कराने लगे। जब गाड़ी ओवरटेक होती, तो नीचे गहरी खा देखकर जान ही सूख जाती। पहाड़ों से बहते हुए झरने दुग्ध की धवल धार से प्रतीत हो रहे थे। मन में सहसा प्रश्न  उठा, अपने  अंतस्तल से निर्मल,शीतल, शुद्ध जलधार प्रवाहित करने वाले पहाड़ों को कठोर क्यों कहते हैं?दूर तक फैले ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर बहते हुए झरनों की पतली धार आँसुओं की सूखी रेखा-सी  प्रतीत हो रहे थे। शायद अपनी ऊँचाई  के कारण एकाकी पहाड़ स्वयं को ही अपना सुख-दुःख सुनाकर हँसते-रोते रहते हैं।  जागेश्वर जी पहुँचते- पहुँचते अँधेरा हो गया। ड्राइवर ने रात्रि में आगे चलने से मना किया, तो हम लोग रात्रि विश्राम के लिए वहीं रुक ग। प्रातः हमने अपनी यात्रा पुनः शुरू की।  दोपहर होते- होते हम उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बदरीनाथ धाम पहुँच ग। अलकनंदा  का जल हल्का हरा रंग लिये हुए इतनी तीव्र गर्जना  और वेग के साथ बह रहा था, मानो पहाड़ रूपी पिता के घर से विदा लेते समय मन में भावनाओं  का रेला उमड़ पड़ा हो। जल इतना निर्मल कि उसमें पड़े हुए पत्थर भी साफ नजर आ रहे थे। यही पहाड़ी नदियाँ सागर से मिलने की आतुरता में अपने मैदानी सफर में कितनी मलिन हो जाती हैं!

सागर दूर

मैदानों संग नदी

हुई बेनूर।

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2- लहरें / डॉ. सुरंगमा यादव

 अत्यंत सौभाग्य से हमें ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर  पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ जी के दर्शन हुए।  जब हम पुरी पहुँचे, तो शाम हो चुकी थी।  हम लोग होटल तलाशने लगे। समुद्र तट के पास वाले होटल  तथा समुद्र से कुछ दूरी पर स्थित होटल के दाम में अंतर था। हमने ऐसी जगह कमरा लिया, जहाँ से समुद्र दिखा दे। सामान कमरे पर छोड़कर हम पुरी घूमने निकल पड़ेभूख भी जोरों की लगी थी। शाकाहारी भोजनालय तलाशने हमें काफी मेहनत करनी पड़ी,तब जाकर मारवाड़ी भोजनालय मिला। खाना खाकर टहलते हुए हम लोग समुद्र तट की ओर चले ग। बहुत हल्की रोशनी ,दिन की अपेक्षा अधिक गर्जना के साथ ऊँची उठतीं लहरें, पलक झपकते ही हमें छूकर लौट जातीं और मन में भय-सा भी उत्पन्न कर देतीं।  कमरे पर भी समुद्र की घनघोर गर्जना सिहरन पैदा कर रही थी। अगले दिन सुबह-सुबह ही हम लोग समुद्र तट पर पहुँच ग। अद्भुत नजारा था। अलग ही आनंद आता  था जब सर्प की तरह रेंगती लहरें वेग के साथ ऊपर उठकर हमें  नहलाकर फिर वापस आने के लिए चली जातींलहरों की तीव्रता से पाँव के नीचे से रेत  सरकने से हम लड़खड़ा जाते।

समुद्र  तट पर वेग से आती ऊँची-ऊँची लहरें अपने साथ सीप,घोंघे,छोटे-छोटे पत्थर आदि लेकर आतीं,तो दूसरी ओर रेत पर उकेरे ग पूर्ण-अपूर्ण स्वप्नों, भावनाओं और घरौंदों को बड़ी बेरहमी से समेट ले जातीं और मानों कहती जातीं -जीवन का अस्तित्व ही यही है-

समुद्र- तट

स्वप्न घरौंदे देख

लहरें हँसें।

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3- आस्था / डॉ. सुरंगमा यादव

 भगवान कृष्ण की लीला स्थली मथुरा में स्थित निधि वन, गोवर्धन पर्वत, ब्रज भूमि तथा यमुना को देखने की इच्छा लंबे समय से मन में थी। सच्चे मन की अभिलाषा राधा-कृष्ण की कृपा से जल्दी ही पूरी हुई।  हम लोग सपरिवार मथुरा पहुँचे। मथुरा जाएँ और गोवर्धन पर्वत  की परिक्रमा न करें ऐसा कैसे हो सकता!हम गोवर्धन जी  की परिक्रमा के लिए चल पड़े। यह परिक्रमा पाद  परिक्रमा, दण्डवत् परिक्रमा सहित कई प्रकार  से की जाती है। दोपहर के समय धूप बहुत तेज होने के कारण हम यह परिक्रमा गाड़ी से ही करने लगे। कई मंदिरों, कुण्डों तथा वृक्ष वाटिकाओं से सुसज्जित गोवर्धन परिक्रमा मार्ग सात कोस या लगभग 21 कि. मी. का  है।  गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में एक स्थान पर हजारों की संख्या में लाल पत्थरों से बने खिलौनेनुमा  छोटे-छोटे प्रतीकात्मक घर देखकर हम आश्चर्य में पड़ ग। कुछ श्रद्धालु हमारे सामने भी पत्थरों से घर की आकृति बना रहे थे। इतनी बड़ी संख्या में छोटे-छोटे घर देखकर लग रहा था, मानो कोई सघन बस्ती हो। घर भी अलग-अलग ऊँचाई के थे। कोई घर केवल सिर पर छत की कामना से बना था, तो कोई एक मंजिल, कोई दो-तीन मंजिल का भी था। पूछने पर पता चला कि यहा मान्यता है कि जो लोग यहाँ इस तरह अपने सपनों का घर बनाकर मन्नत माँगक जाते हैं, उनका घर जल्दी ही बन जाता है। सचमुच आस्थाएँ भी कितनी बड़ी होती हैं। अपनी इच्छाएँ,दुःख-तकलीफ सब कुछ ईश्वर से कहकर मन हल्का कर लेती हैं।

मन की बात

पत्थर में देवता

उठते जाग 

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4-चिल्का की झील- उड़ीसा का प्राकृतिक सौंदर्य /  अंजू निगम

 


उड़ीसा के चंद्रभागा तट से टकराती समुद्र की उत्कट लहरें। कतार में लगे, हवा के साथ दौड़ लगाते नारियल के विशालकाय वृक्ष। इन वृक्षों के समानांतर चलती सीधी-सपाट सड़क, चिल्का झील तक पहुँचती है। चिल्का का विहंगम दृश्य मन को सम्मोहित कर गया। सैलानियों का जमावड़ा और जल- क्रीड़ा करते प्रवासी पक्षी। ईश्वर ने मानो किसी कुशल चितेरे- सा प्रकृति को अनंत तक कैद कर रखा हो। दूर तक फैला जल- क्षेत्र और क्षितिज से मानो होड़ करता, धुँधला- सा नजर आता एशिया का सबसे बड़ा लैगून।

लैगून देखने की उत्सुकता लगभग हर सैलानी को थी। हम भी इतनी दूर लैगून को पास से देखने की इच्छा लेकर ही आ थे। नीली, साफ, स्वच्छ चिल्का झील और  समुद्र के पानी का खारापन आपस में मिल, जीवन का एक सुदंर संदेश दे रहे थे। मीठा और खारा भी आपसी सामंजस्य स्थापित कर एक- दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार कर, साथ साथ प्रवाहित हो रहे थे।

चिल्का की झील

प्रवासी पक्षियों को

देती आश्रय

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10 टिप्‍पणियां:

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

इन हाइबन ने मेरी बद्रीनाथ एवं पूरी, चिल्का झील की यात्रा को जीवंत किया।
बधाई।

अनिता मंडा ने कहा…

सुरंगमा जी तीनों हाइबन उत्कृष्ट। मेरे मन मे तो भ्रमण की साध जग गई है।
अंजू जी सुंदर हाइबन।
दोनों रचनाकारों को बधाई।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

वाह! एक साथ चार जगहों पर घूम लिए! बहुत बढ़िया! सुंदर हाइबन के लिए सुरंगमा जी व अंजू जी को हार्दिक बधाई!

~सादर
अनिता ललित

surbhidagar001@gmail.com ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने हार्दिक बधाई
एक साथ कई जगह घूम लिए।

रश्मि विभा त्रिपाठी ने कहा…

वाह।
सभी हाइबन बहुत सुंदर।
हार्दिक बधाई आपको।

सादर

बेनामी ने कहा…

प्राकृतिक छटा बिखेरते सभी हाइबन बहुत ही सुंदर हैं।डॉ सुरंगमा एवं अंजु जी को हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर ।

डॉ. पूर्वा शर्मा ने कहा…

प्राकृतिक सैर करवाते हुए संस्मरणात्मक-सुंदर हाइबन
सुरंगमा जी एवं अंजु जी को बधाई

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! आनन्द आ गया। बेहतरीन हाइबन , दोनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।

Krishna ने कहा…

घर बैठे ही इतने सुंदर स्थानों का भ्रमण करवाने के लिए धन्यवाद। बहुत अच्छे हाइबन। सुरंगमा जी एवं अंजु जी को हार्दिक बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सुरंगमा जी और अंजू जी के हाइबन ने सुन्दर स्थानों की ख़ूबसूरत यात्रा कराई। आप दोनों को हार्दिक बधाई।