1-नदी का दर्द / डॉ. सुरंगमा यादव
बदरीनाथ धाम के लिए हम सब बदायूँ से सुबह सात बजे निजी वाहन से निकले। हल्द्वानी
तक तो पहाड़ी और मैदानी रास्तों में अधिक अंतर पता न चला; परन्तु उसके बाद हम जैसे -जैसे ऊपर चढ़ते गए, पहाड़ काटकर बनाये गए गोल घुमावदार रास्ते रोमांच मिश्रित भय की
अनुभूति कराने लगे। जब गाड़ी ओवरटेक होती, तो नीचे गहरी खाई देखकर जान ही सूख जाती। पहाड़ों से बहते हुए झरने दुग्ध की धवल धार
से प्रतीत हो रहे थे। मन में सहसा प्रश्न उठा, अपने अंतस्तल से
निर्मल,शीतल, शुद्ध जलधार प्रवाहित करने वाले पहाड़ों को कठोर क्यों कहते हैं?दूर
तक फैले ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर बहते हुए झरनों की पतली धार आँसुओं की सूखी
रेखा-सी प्रतीत हो रहे थे। शायद अपनी ऊँचाई के कारण एकाकी पहाड़ स्वयं
को ही अपना सुख-दुःख सुनाकर हँसते-रोते रहते हैं। जागेश्वर जी पहुँचते- पहुँचते अँधेरा हो गया। ड्राइवर ने रात्रि में आगे चलने से मना किया, तो हम लोग
रात्रि विश्राम के लिए वहीं रुक गए। प्रातः
हमने अपनी यात्रा पुनः शुरू की। दोपहर
होते- होते हम उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बदरीनाथ धाम पहुँच गए। अलकनंदा
का जल हल्का हरा रंग लिये हुए इतनी तीव्र गर्जना और
वेग के साथ बह रहा था, मानो
पहाड़ रूपी पिता के घर से विदा लेते समय मन में भावनाओं का रेला उमड़ पड़ा हो। जल इतना निर्मल कि उसमें
पड़े हुए पत्थर भी साफ नजर आ रहे थे। यही पहाड़ी नदियाँ सागर से मिलने की आतुरता में अपने मैदानी
सफर में कितनी मलिन हो जाती हैं!
सागर दूर
मैदानों संग नदी
हुई बेनूर।
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2- लहरें / डॉ. सुरंगमा यादव
समुद्र तट पर वेग से आती ऊँची-ऊँची
लहरें अपने साथ सीप,घोंघे,छोटे-छोटे पत्थर आदि लेकर आतीं,तो दूसरी ओर रेत पर उकेरे
गए पूर्ण-अपूर्ण स्वप्नों, भावनाओं और घरौंदों
को बड़ी बेरहमी से समेट ले जातीं और मानों कहती जातीं -जीवन का अस्तित्व ही यही है-
समुद्र- तट
स्वप्न घरौंदे देख
लहरें हँसें।
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3-
आस्था / डॉ. सुरंगमा यादव
मन की बात
पत्थर में देवता
उठते जाग।
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4-चिल्का की झील- उड़ीसा का प्राकृतिक सौंदर्य /
अंजू निगम
उड़ीसा के चंद्रभागा तट से टकराती समुद्र की
उत्कट लहरें। कतार में लगे, हवा के
साथ दौड़ लगाते नारियल के विशालकाय वृक्ष। इन वृक्षों के समानांतर चलती सीधी-सपाट
सड़क, चिल्का झील तक पहुँचती है। चिल्का का विहंगम दृश्य मन को सम्मोहित कर
गया। सैलानियों का जमावड़ा और जल- क्रीड़ा करते प्रवासी पक्षी। ईश्वर ने मानो किसी कुशल चितेरे- सा प्रकृति को अनंत तक कैद कर रखा हो। दूर तक फैला जल- क्षेत्र और क्षितिज से मानो होड़ करता, धुँधला- सा नजर आता एशिया का सबसे बड़ा लैगून।
लैगून देखने की उत्सुकता लगभग हर सैलानी को थी।
हम भी इतनी दूर लैगून को पास से देखने की इच्छा लेकर ही आए थे। नीली, साफ, स्वच्छ चिल्का झील और समुद्र के पानी का खारापन आपस में मिल, जीवन का एक सुदंर संदेश दे रहे थे। मीठा और खारा
भी आपसी सामंजस्य स्थापित कर एक- दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार कर, साथ साथ
प्रवाहित हो रहे थे।
चिल्का की झील
प्रवासी पक्षियों को
देती आश्रय
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10 टिप्पणियां:
इन हाइबन ने मेरी बद्रीनाथ एवं पूरी, चिल्का झील की यात्रा को जीवंत किया।
बधाई।
सुरंगमा जी तीनों हाइबन उत्कृष्ट। मेरे मन मे तो भ्रमण की साध जग गई है।
अंजू जी सुंदर हाइबन।
दोनों रचनाकारों को बधाई।
वाह! एक साथ चार जगहों पर घूम लिए! बहुत बढ़िया! सुंदर हाइबन के लिए सुरंगमा जी व अंजू जी को हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने हार्दिक बधाई
एक साथ कई जगह घूम लिए।
वाह।
सभी हाइबन बहुत सुंदर।
हार्दिक बधाई आपको।
सादर
प्राकृतिक छटा बिखेरते सभी हाइबन बहुत ही सुंदर हैं।डॉ सुरंगमा एवं अंजु जी को हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर ।
प्राकृतिक सैर करवाते हुए संस्मरणात्मक-सुंदर हाइबन
सुरंगमा जी एवं अंजु जी को बधाई
वाह! आनन्द आ गया। बेहतरीन हाइबन , दोनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
घर बैठे ही इतने सुंदर स्थानों का भ्रमण करवाने के लिए धन्यवाद। बहुत अच्छे हाइबन। सुरंगमा जी एवं अंजु जी को हार्दिक बधाई।
सुरंगमा जी और अंजू जी के हाइबन ने सुन्दर स्थानों की ख़ूबसूरत यात्रा कराई। आप दोनों को हार्दिक बधाई।
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