[मेरे पूर्व प्रकाशित माहिया पर रश्मि विभा त्रिपाठी ने जुगलबन्दी में कुछ माहिया रचे हैं। आशा है इनका यह प्रयास पसन्द आएगा-काम्बोज]
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
रश्मि विभा त्रिपाठी
1
सन्देशे खोए हैं
तुम क्या जानोगे
हम कितना रोए हैं!
○
सन्देसे आएँगे
करना आस यही
बिछड़े मिल जाएँगे।
2
बाहों में कस जाना
तन से गुँथकरके
मन में तुम बस जाना।
○
बाहों में कसकरके
दूर न तुम जाना
फिर मन में बसकरके।
3
बाहों के बंधन में
अधरों के प्याले
साँसों के चंदन में।
○
अब तो हर बंधन में
सब विष घोल रहे
साँसों के चंदन में।
4
यों मत मज़बूर करो
हम दिल में रहते
हमको मत दूर करो।
○
ये ही दस्तूर रहा
दिल में जो बसता
नज़रों से दूर रहा।
5
विधना का लेखा है
आँखें तरस गईं
तुमको ना देखा है।
○
विधना का ये लेखा
बदल गया जबसे
मैंने तुमको देखा।
6
रस दिल में भर जाना
अधरों की वंशी
अधरों पर धर जाना।
○
पूरी आशा कर दी
अधरों की वंशी
जब अधरों पे धर दी।
7
है उम्र नहीं बन्धन
खुशबू ही देगा
साँसों में जो चंदन।
○
अब टूट चला बंधन
कब तक विष झेले
साँसों का ये चन्दन।
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10 टिप्पणियां:
अद्भुत! बहुत खूबसूरत जुगलबन्दी। आप दोनों को हार्दिक बधाई।
वाह सर आपने तो अच्छा लिखा ही है परन्तु रश्मि जी ने तो कमाल ही कर दिया, बहुत ही सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाऍं।
बढ़िया प्रयास ! बहुत बधाई सर 🌹
बहुत बढ़िया, हार्दिक बधाई आपको।
क्या बात है,जितने खूबसूरत माहिया,उतनी ही सुंदर जुगलबंदी।आप दोनो को हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर जुगलबन्दी, रश्मि जी को हार्दिक बधाई!
आदरणीय भैया जिस भी विधा में लिखते हैं शिल्प और भाव दोनों पर मन कह उठता है वाह।
रश्मि जी आपकी जुगलबंदी बेहतरीन है। आप दोनों कवि गण को हार्दिक बधाई
बेहतरीन जुगलबंदी। जितने सुंदर माहिया भैया के हैं उतने ही सुंदर माहिया की रचना रश्मि जी ने की है। आप दोनों के हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
वाह्ह्ह... बहुत ही सुंदर रसपूर्ण सृजन 🌹😊बधाई आप दोनों को 🙏🏻😊🌹🌹🌹
बहुत सुंदर जुगलबंदी...आप दोनों के हार्दिक बधाई।
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