कमला निखुर्पा
जेठ की धूप
सुबह- सवेरे ही
जला अलाव
छत पे जा बैठे हैं
सूरज दादा
सकुचाई -सी नदी
सिकुड़ा ताल
सूने हैं उपवन
खोई चहक
रोए पंछी की प्यास
धौंस जमाए
बिना कुसूर के ही
थप्पड़ जड़े
अरे! लू महारानी
धूल निगोड़ी
करती मनमानी
कभी यहाँ तो
कभी उस मुँडेर
नाचे बेताल
खिलखिलाता रहा
गुलमोहर
धानी चूनर ओढ़
चलता नहीं
उसपे तेरा जोर
जितनी तपी
उतनी ही खिली वो
चटख हुए
सुर्ख फूलों के रंग
जितना उसे
आतप झुलसाए
तपिस झेल
पंखुड़ियाँ बिछाए ।
हरी शाख पे
पंछी गाए सोहर
धूप में खिले
लाल गुलमोहर
सुर्ख गुलमोहर ।
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[22 मई 2024]
11 टिप्पणियां:
सुन्दर
बहुत सुन्दर
पुष्पा मेहरा
ग्रीष्म ऋतु का बहुत सुन्दर चित्रण। बधाई मैम
सिकुडती नदी, सूखते ताल , घूप, लू के थपेडे और इन बीच सब के बीच खिलखिलाता गुलमोहर । ग्रीष्म ऋतु का यथार्थ चित्रण करता बहुत सुंदर चोका। हार्दिक बधाई कमला निखुर्पा जी।सुदर्शन रत्नाकर
ग्रीष्म ऋतु का सजीव चित्र अंकित करता सुंदर चोका।हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर
वाह! खूबसूरत सृजन।
धन्यवाद महोदया
बहुत सुंदर चोका... हार्दिक बधाई कमला जी।
बहुत सुन्दर चित्रण। हार्दिक बधाई कमला जी.
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