1-सुदर्शन रत्नाकर
1
पर्वत पर
बादल मँडराते
दिल हों जैसे
दीपक आशाओं
के
जलते हैं
रहते।।
2
श्वेत बादल
बहती ज्यों
नदियाँ
आसमान में
कितनी हैं
अद्भुत
प्रकृति की
निधियाँ।
3
मेघों का
मेला
लगा नभ- गाँव
में
धरती जगी
ओढ़ चूनर
धानी
बरसा जब पानी।
4
दूर नभ में
उड़ रहे बादल
होड़ लगी
है
इक दूजे से
आगे
बढ़ने को
आतुर।
5
काली घटाएँ
घिर आई अम्बर
में
छाया अँधेरा
उजास की आस
में
दमकी है दामिनी।
6
भटक रहे
बादलों के
टुकड़े
एक होने को
धरती देख
रही
मिल कब बरसेंगे।
7
विभिन्न रूप
विभिन्न आकृतियाँ
कैसे लाते
हो
सावन में
बादल
रंग अनेक
तुम।
8
उड़ी आ रही
बादलों की
पालकी
बैठी दुल्हन
वर्षा शृंगार
किए
धरती से मिलने।
9
बादल जैसे
लहराया आँचल
हवा के
संग
मिलने को
आतुर
प्यासी वसुधंरा
से।
-0-
2- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
1.
मेघ बरसे
भरी धरा की गोद
महकी माटी
बँटे गंध के नेग
इठलाई नदियाँ।
2.
सरसों नाची
अमराई बौराई
धरा लजाई
नेह वारुणी लिए
आया है ऋतुराज।
-0-
8 टिप्पणियां:
🙏🙏🙏❤️❤️
प्रकृति और मेघ पर बहुत सुन्दर सुन्दर ताँका. हार्दिक बधाई रत्नाकर जी और शिवजी जी.
प्राकृतिक छटा बिखेरते एक से बढ़कर एक सुन्दर ताँका।
आदरणीया रत्नाकर जी एवं आदरणीय शिव जी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई।
सादर
बहुत सुंदर ताँका...आ. सुदर्शन दीदी तथा शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-07-2021को चर्चा – 4,133 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार।
मेघों की अठखेलियों पर विविध बिम्ब उकेरते हुए आप दोनों के ताँका उत्कृष्ट हैं।
बधाई
बहुत सुंदर ताँका...आद.सुदर्शन दीदी तथा आद.शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई!
एक टिप्पणी भेजें