ताँका
मंजूषा मन
1
सौदा किया था
सुख अपने देके
दुख लिया था,
फिर भी मुस्काए हैं
चलो! काम आए हैं।
2
पीड़ा के वक़्त
छोड़ जाएँ अकेला
अपने सब,
कैसा लगा है रोग
पराए सारे लोग।
3
टीसते नहीं
पुराने हुए जख्म
हुआ लगाव
लगने लगे प्यारे
अब ये दर्द सारे।
4
रहे मौन ही
घातें आघातें झेल
रो भी क्या पाते
सारा मान
गँवाते,
कह किसे बताते।
5
सुख चाहा था
पाए तिरस्कार ही
स्वयं को लुटा
जिसके लिए खोए
काँटे
उसने बोए।
-0-
12 टिप्पणियां:
सुंदर
बहुत सुंदर ताँका।हार्दिक बधाई ।
अति सुंदर। बहुत बहुत बधाई।
शानदार
सभी ताँका सुंदर,बधाई मंजूषा जी
वाह
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (11-08-2021 ) को 'जलवायु परिवर्तन की चिंताजनक ख़बर' (चर्चा अंक 4143) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुंदर ताँका।
बहुत ही सुंदर।
सादर
मर्मस्पर्शी ताँका
हार्दिक बधाइयाँ आपको
बहुत बढ़िया ताँका रचे हैं हार्दिक बधाई।
भावपूर्ण ताँका,हार्दिक बधाई!
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