पूनम सैनी
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सेदोका-मीरा गोयल
1
लग जा गले
आडम्बर न कर
मेजबान होने का,
न मेहमान।
समय नहीं बचा
पानी-सा बह चला।
2
अधीर हिय
विरोधी आकांक्षाएँ
पराजय निश्चित
एक म्यान में
चाहो दो तलवार
असंभव चयन।
3
महत्त्वाकांक्षा
निश्चयात्मक पग
लक्ष्य सिद्धि संभव
माया न क्षोभ
लक्ष्य बने सर्वस्व
धर्म कर्म नियम।
4
हठी है अहं!
दुःख सहना, देना
है, उसका
व्यसन
जीतने न दो
तोड़ो ये सिलसिला
आत्मा को मत रुला।
5
त्रिगुणात्मक
नियम प्रकृति का
है सत, रज, तम
लो पहचान।
सहर्ष अपनाओ
संघर्ष बिसराओ।
6
मोह व्यर्थ है
चिन्ता है निरर्थक
कर्म बने प्रधान
शुद्ध हृदय
सरल अभिव्यक्ति
सार्थक हो जीवन।
7
नहीं विजय
प्रकृति से उलझे
अखण्डित नियम
अपक्षपाती
भोगना है सब को
आज नहीं तो कल।
8
मानव मन
शंकित पीड़ित क्यों
न छोड़ सके माया
न त्यागे धर्म
साँप छछून्दर-सा
उगले न निगले।
9
मानव मन
अनबूझ पहेली
खुद नहीं जानता
चाहता है क्या
पूरब औ पच्छिम
चाहता साथ साथ।
10
मिलोगे तुम
प्रफुल्लित हुई मैं
तुम्हारी इच्छा पूर्ति
संतोष मुझे
सफलित कमाना
सुखी अन्तरात्मा।
8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-08-2021को चर्चा – 4,161 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर
सहज अभिव्यक्ति । अति सुन्दर ।
सुंदर सार्थक सेदोका।
बहुत ही सुन्दर ताँका व सेदोका।
हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ आप दोनों को।
बहुत ही सुंदर।
सादर
बहुत सुन्दर रचनाकार द्वय को हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई
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