भीकम सिंह
1
नए-पुराने
पत्थर बिखराए
पहाड़ ने यू
गुस्से में मौन तोड़ा
किसी तपस्वी ने ज्यों।
2
धकेले पार
पापी पतझड़ को
ऋतु बहार
सूर्य की अरुणाई
देती सुख अपार।
3
छोटा पाट ले
बलखाती सिन्धु ने
नीली चूनर
घाटियों को ओढ़ाई
तो पवन बौराई ।
4
पहरा देता
पत्थरों के अस्त्र ले
पहाड़ बड़ा
दे रहा निमंत्रण
शांति का खड़ा-खड़ा।
5
बाहें बड़ी-सी
हर ओर फैलाते
प्यारे पर्वत
नदियों में मुस्काते
दु:ख ना कह पाते।
6
पत्थर टूटे
मौन मुखर हुआ
परबतों का
झरी है कांत काया
धूल ने यूँ बताया ।
7
मूक है
बड़ा
कोलाहल से भरा
दर्द से हरा
पहाड़ बैठ रहा
दूर से
दीखे खड़ा।
8
देख अकेला
पृष्ठभूमि में चाँद
तारें लूटते
पहाड़ों पर
नींदे
पर्यटक उनींदे ।
9
मेघ ज्यों फटा
पहाड़ों से भी ऊँचे
तरु
उखड़े
लहरों पे तैरते
पत्थरों के
टुकड़े।
10
पेड़ कहते
पर्वतों की कहानी
देके गवाही
विकास के नाम पे
जीवन की तबाही।
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11 टिप्पणियां:
सुंदर
वाह ।
प्रकृति के सौंदर्य के साथ ही विकास के नाम पर कटते जंगल,दरकते पहाड़ जैसे प्रकृति के क्रोध को अभिव्यक्त करते सुंदर ताँका।हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
मानव ने विकास के नाम पर प्रकृति का जो दोहन किया है उसकी पीड़ा को पर्वतों के माध्यम से दर्शाते हुए बहुत सुंदर ,सामयिक ताँका भीकम सिंह जी। आपको हार्दिक बधाई।
भीकम जी के अत्यधिक प्रेरणा प्रद तांका हैं हार्दिक बधाई |
मूक है बड़ा
कोलाहल से भरा
दर्द से हरा
पहाड़ बैठ रहा
दूर से दीखे खड़ा।
आदरणीय भीकम जी के ताँका गहरे अर्थों को संजोए हुए हैं। प्रकृति को देखने का दृष्टिकोण अद्भुत है-बधाई।
बहुत सुन्दर यथार्थपरक ताँका । पहाड़ों से गिरते पत्थर कितने विनाशकारी हो सकते हैं । गहन भाव ताँका रचना के लिये हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी ।
बहुत ही सुन्दर भाव संजोए हैं सभी ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर
बहुत सुन्दर,गहन भाव लिए ताँका मन को छू गए!
मूक है बड़ा
कोलाहल से भरा
दर्द से हरा
पहाड़ बैठ रहा
दूर से दीखे खड़ा।
लाजवाब!
हार्दिक बधाई आपको आदरणीय भाईसाहब।
मेरे ताँकाओं पर ,आपके विचार और भावनाओं का मैं ह्रदय से आभारी हूँ ।
बहुत सुन्दर तांका, हार्दिक बधाई
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