मंगलवार, 19 जून 2018

813-खाली घरौंदा


डॉ.भावना कुँअर
1-सूना है घर

सूखती नहीं
अब आँखों से नमी
नाकाम हुई
हर कोशिश यहाँ।
समझ न पाऊँ
मैं हुई क्यों अकेली?
घोंटा था गला
अरमानों का सभी
पर तुमको
सब कुछ था दिया,
जाने फिर क्यों
हमें मिली है सज़ा
हो गया घर
एकदम अकेला
न महकता
अब फूल भी कोई
सूना है घर
न पंछियों-सा अब
आँगन चहकता।
-०-
2-खाली घरौंदा

मेरा सहारा
पुरानी एलबम
कैद जिसमें
वो सुनहरी यादें
खो जाती हूँ
बीते उन पलों में
कैसे बनाया
हमने ये घरौंदा
आए उसमें
दो नन्हे-नन्हे पाँव
बढ़ते गए
ज्यों-ज्यों था वक़्त बढ़ा
पर फिर भी
नाज़ुक बहुत थे
उनके पंख
लेकिन फिर भी वे
बेखौफ होके
भर गए उड़ान
ढूँढते हैं वो
जाने अब वहाँ क्या
जहाँ है फैला
बेदर्द  आसमान।
राह तकता
रह गया ये मेरा
बेबस बड़ा
पुराना-सा घरौंदा
खाली औ सुनसान।
-0-

8 टिप्‍पणियां:

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही सुंदर , भावपूर्ण चोका
हार्दिक बधाई आदरणीया भावना जी

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3008 में दिया जाएगा

धन्यवाद

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

aap dono ka bahut bahut aabhar..

Jyotsana pradeep ने कहा…

बेहद भावपूर्ण और खूबसूरत रचनाएँ भावना जी... हार्दिक बधाई आपको !

Anita Manda ने कहा…

मार्मिक !

ज्योति-कलश ने कहा…

मर्मस्पर्शी चोका , हार्दिक बधाई !

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

aap sabhi padhne valom ka bahut bahut aabhar..