रश्मि
विभा त्रिपाठी
1-एक सवाल
क्यों बिगड़ी है
कानून की व्यवस्था
वकालत तो
हरेक ने पढ़ी है
अगर नहीं
तो बार काउंसिल में
कोई बताए
बस एक बात कि
वार्षिक दर
वकीलों की बढ़ी है
आखिर कैसे
विडम्बना बड़ी है
कि जो निर्दोष
पुलिस उसके ही
पीछे पड़ी है
पीड़ितों के हाथों में
हथकड़ी है
अँधेरों भरा रास्ता
बेइज्जती पे
दुर्योधन उतारू
द्रौपदी की तो
नजर शरम से
नीचे गढ़ी है
मन ही मन कोसे
कृष्ण को खूब
अदालतों में आज
भली प्रकार
क्या- क्या सच है और
कहाँ गड़बड़ी है
कौन ये देखे
निष्पक्ष हो फैसला
नामुमकिन
न्याय की देवी की तो
दोनों आँखों पे
देखो पट्टी चढ़ी है
वह तो बनी
गान्धारी- सी खड़ी है
क्या विचित्र घड़ी है!
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2-तुम्हारा खत
मिला था कल
मीत तुम्हारा खत
हर्फ- हर्फ में
मेरी फिक्र थी और
बात- बात में
मेरी सलामती की
वह मन्नत
सुनो! मेरे हाल से
न हो आहत
मेरी अच्छी सेहत
और खुशी का
राज एक तुम हो
पल- पल ही
तुमसे मिली है जो
मुझे राहत
आने नहीं देते हो
मुझ तलक
आगे बढ़करके
रोक लेते हो
हर एक आफत
वक्त माना कि
आज अच्छा नहीं है
लेकिन यह
इतना भी खराब
नहीं हुआ है
तुम्हारी ही दुआ है
साए- सी संग,
यकीनन तुमको
किसी ने दी है
खबर ये गलत
कि मैं दुखी हूँ
हाँ थोड़ी सीख ली है
मैंने आदत
झींककर जीने की
उधड़े हुए
ये जो हालात हैं
इन्हें सीने की
बस तुम जरा भी
परदेस में
उदास होना मत
तुम्हीं से मैं हूँ
और मेरी साँसों का
है यह सत
मैं सच कहती हूँ-
तुम न होते
तो न जाने क्या होती
मेरी हालत
हरेक हालात में
मुझे दे जाती
हर बार हिम्मत
और जिलाती
जो मुझे, वो है सिर्फ
तुम्हारी ही चाहत।
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर चोका रश्मि जी!
बेहतरीन चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सार्थक और उम्दा चोका के लिए बहुत बधाई
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