1-प्रियंका गुप्ता
1
धूप अकेली
औंधे मुँह थी
पड़ी
किसी ने न मनाया;
शाम को उठी
थके-थके क़दमों
वापस घर चली ।
2
पढ़ना चाहा
ज़िंदगी की किताब
आधी-अधूरी मिली
;
भीगा था मन
सीली- सी किताब
भी
सहेजूँ भला कैसे
?
-0-
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
पीछा न छोड़ें
गर्दिशें चली आईं
मुँह नहीं ये
मोड़ें,
गिरे बारहा,
न हम हार माने
न वे माँगें जुदाई
।
2
बिके हाट में
वे साधु-
सन्त ज्ञानी
जो लगाए मुखौटे,
हम न बिके
भले दो कौड़ी के थे
सिर ताने खड़े थे ।
3
बीता जीवन
न पहचाना हमें
न कभी जाना
हमें,
बदली राहें,
अलग है दिशाएँ
अब मिल न पाएँ ।
4
दूर सागर
लेके
खाली गागर
भरने चले हम,
बाँटी
हमने
हर बूँद पथ में
जो सागर से पाई ।
5
हम क्या करें !
दुआएँ बेअसर
भटके रात-दिन,
जहाँ भी रुके,
गरम आँसुओं
से
दर गीला मिला था ।
6
मिलता नहीं,
कभी प्यासे को पानी,
आहत को दिलासा,
अधूरी रही
जीवन-परिभाषा,
तट कब थे मिले !
7
पास आ बैठे
कुछ देर ठहरे
छल कर गए थे,
पथ में मिले
बचाकर नज़र
चुपचाप निकले ।
-0-
12 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
सभी सेदोका बेहद सुन्दर !
१. धूप अकेली
औंधे मुँह थी पड़ी.…
२. बिके हाट में
वे साधु- सन्त ज्ञानी
जो लगाए मुखौटे....
विशेष लगे!
प्रियंका जी और काम्बोज सर का अभिनन्दन!!
bahut bhavpoorn prastuti ....
dhoop akelii ......anupam !bahut badhaaii priyanka ji !
'bike haat mein " ,'door saagar' behad prabhaavii ...mn ko chhoo lene wale sedoka ... aapake saattvik mn ko kalam ko saadar naman !!
saadar
jyotsna sharma
sabhi sedoka bahut hi sunder likhe hain.bhai kamboj ji va priyanka ji ko badhai.
pushpa mehra.
धुप अकेली ....
मिला न कभी प्यासे...
सुन्दर रचनाएँ दोनो रचनाकारों को शुभकामनायें और बधाइयाँ
डॉ. कविता भट्ट
सभी सेदोका बहुत सुन्दर लेकिन धूप अकेली, बिके हाट में, मिलता नहीं इन सेदोका ने अधिक प्रभावित किया।
काम्बोज जी, प्रियंका जी को बहुत बधाई!
बहुत सुंदर रचनाऐं ।
बीता जीवन
न पहचाना हमें
न कभी जाना हमें,
बदली राहें,
अलग है दिशाएँ
अब मिल न पाएँ ।aapki saari rachnayen man ko choo letin hain ...katu sachchaie...jeevan ...bas!beet hi jaata hai...koi hamen pahchaan bhi nahin paata.bahut sunder bhaiya ji .sadar naman ke saath -saath badhai bhi aapko .
धूप अकेली
औंधे मुँह थी पड़ी
किसी ने न मनाया;
शाम को उठी
थके-थके क़दमों
वापस घर चली ।badi pyari rachnayen...dhoop ka khoobsurat chitran...priyanka ji ko naman ke saath -saath badhai .
पीछा न छोड़ें
गर्दिशें चली आईं
मुँह नहीं ये मोड़ें,
गिरे बारहा,
न हम हार माने
न वे माँगें जुदाई ।
ythart se otprot bahut bahut badhai donon ne bahut achhe sedoka likhen hain shubhkamnye...
बहुत सुन्दर रचना काम्बोज जी आपके व्यक्तित्व की झलक दर्शाते सेदोका |प्रियंका जी को भी हार्दिक बधाई |
सविता अग्रवाल"सवि"
आप सबका बहुत आभार...और सबसे ज्यादा आभारी तो काम्बोज अंकल की हूँ, जिनके निरंतर उत्साहवर्द्धन और मार्गदर्शन से मैं सेदोका, तांका और चोका जैसी विधाओं में भी कुछ लिख पाई...|
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