मंगलवार, 30 अगस्त 2022

1067

 कपिल कुमार

1

पृथ्वी अभागी

सहती रही खड़ी

दुःख की घड़ी

बन अबला नारी

नर ने लेके

आधुनिक मशीनें

काटके सीने

अंदर से निकाले

माल-मसाले

फिर भी नही भरा

धरा को गए

छोड़के अधमरा

आगे नई खोज में। 

2

छाया-काम्बोज

पीपल खड़े

उम्रदराज बड़े

घर के बीच

टहनियाँ हिलाते

वर्षों से घने

सिपाहियों- से तने

बन-ठनके

किंवदंतियाँ जैसे

भूत-निवास

एक दिन ले गई

उनकी श्वास-श्वास। 

-0-




9 टिप्‍पणियां:

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

दोनो ही चोका सार्थक एवं भावपूर्ण,विकास के नाम पर पृथ्वी का दोहन करते मनुष्य के चरित्र के साथ ही आँगन के पीपल का बुजुर्गों की तरह रहने और चले जाने का सुंदर चित्र।

बेनामी ने कहा…

विकास के नाम पर पृथ्वी के दोहन का यथार्थ चित्रण करते सुंदर चोका। बहुत बहुत बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर सार्थक चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय।

सादर

Sonneteer Anima Das ने कहा…

अत्यंत सुंदर... सार्थक सृजन 🌹🙏

Gurjar Pradeep Baisla ने कहा…

बहुत सुंदर

बेनामी ने कहा…

शानदार जबरदस्त

Nrendra Gujjar ने कहा…

सुंदर वृतांत

Nrendra Gujjar ने कहा…

सुंदर वृतांत

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सार्थक चोका के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें