1-सोच
सुदर्शन रत्नाकर
संसार में मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है
जो सोचने की क्षमता रखता है। पशु -पक्षी में शायद यह गुण नहीं है। है भी तो वह अपने
भावों को व्यक्त नहीं कर सकते। पर मनुष्य सोच भी सकता है और व्यक्त भी कर सकता है। लेकिन यह उस पर निर्भर करता है कि वह कैसी सोच रखता
है-सकारात्मक अथवा नकारात्मक। उसकी इस सोच और अभिव्यक्ति का उसके जीवन पर अत्यधिक प्रभाव
पड़ता है केवल उसके जीवन पर ही नहीं अपितु
उसके संपर्क में आने वाले लोगों को भी यह सोच प्रभावित करती है।
जैसी सोच ,वैसा जीवन। पानी का गिलास
आधा ख़ाली है या आधा भरा हुआ है बात तो एक है लेकिन ख़ाली है कहना हमारी नकारात्मक
सोच को दर्शाता है और भरा हुआ सकारात्मक विचार है। यही दृष्टिकोण जीवन के प्रति है,
जो नहीं है उसका विलाप करते रहना , शिकायत करते
रहना ,जीवन को कंटकों से भर देता है, जो
है उसके लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त कर संतुष्ट हुआ जा सकता है। यह सकारात्मक सोच होगी। बात केवल सोच बदलने की है
इससे हमारा जीवन स्वाभाविक रूप से बदल जाएगा ।यदि हम मानसिक रूप से ख़ुश हैं तो हमारे
आसपास का वातावरण भी ख़ुशगवार होगा। तन स्वस्थ होगा , काम करने
की क्षमता बढ़ेगी जिससे हम अपने परिवार. समाज
को अपना कुछ देकर आगे बढ़ाने में सहयोग दे सकते हैं।
बदलेगा जीवन
खिल उठेगा
।
-0- सुदर्शन रत्नाकर , ई-29,नेहरू ग्राउंड,फ़रीदाबाद 121001
मोबाइल- 9811251135
भीकम सिंह
केदार काँठा
धूसर -सा पहाड़
उसके पार
खड़े देवदारों की
लम्बी कतार
वन जैसा विस्तार
जिसे देखके
ठिठक जाती है
ठंडी
बयार
मौसम खड़ा होता
देखकर बहार ।
नंगे पहाड़
कोई पेड़ ना फूल
ना कोई घास
बर्फ में लेटे सब
पाँव पसारे
झोंपड़ी में लेटा ज्यों
थका श्रमिक
अपनी भूख मारे
मनरेगा के
तसला-फावड़ा ज्यों
अभी-अभी उतारे।
हिम शिखर
चुनौती का सृजन
किया करते
मेघ कंधों पे धरे
उतर आते
सारी वनस्पति को
हरा करते
हिम वर्षा करते
जीवों में जैसे
ऊर्जा भरा करते
हार , हरा करते ।
जब कभी भी
पर्वत का खिसका
भाग जरा -सा
देखकर मनुष्य
कुछ डरा-सा
ईश्वर का स्थान भी
और नाम भी
जप लेता जरा-सा
फिर वो सारे
षड़यंत्रों के जाल
ढाई घोड़े की चाल ।
पेड़ पाँवों में
विकास की रस्सियाँ
बाँध के खड़े
पहाड़ की छुअन
घसीट रहे
पहाड़ चुप खड़े
भरे ही रहे
शिला कसती रही
हँसती रही
गुस्से उम्रभर के
दुःख सारे मन के ।
जैसा भी होता
सह लेता पर्वत
मृदा- स्खलन
सोचे मन ही मन
ऐसा होगा क्या
यह कभी ना सोचा
शिला गिरेगी
इतनी धँसकर
रस्ता रहेगा
महीनों फँसकर
खड़ा होगा लश्कर ।
शान्त मूड़ के
हम तो पहाड़ हैं
हिम चूड़ के
जहाँ हिम गिरती
धूप तो कभी
तनिक-सी मिलती
सूर्य का यहाँ
पक्षपात चलता
कभी मिलता
कभी-कभी तो वह
सुबह ही ढलता ।
-0-
3-विभा रश्मि
हमवतन
कर राष्ट्र जतन
उत्सर्ग प्राण
वीरों की सुन दास्ताँ
लहू क्यों न खौलता ?
2
माथे कफ़न
बाँध किया प्रस्थान
जननी जय
गाते - गुनगुनाते
वीर रणबाँकुरे ।
3
राखी रेशमी
सद्भावना से भरी
बाँधे सैनिक
बना वो अरिहंत
भिड़ंत - छिपी जीत ।
4
पत्थरबाज़
आतंकी चहुँ ओर
ताक में बैठे
आक्रमण विफ़ल
देख हौसला बल ।
5
क्रूर आतंकी
घाटी को हैं रँगते
देंगे कुर्बानी
सैनिकों ने भी ठानी
अरिबल हो ढेर ।
-0--
10 टिप्पणियां:
पहाड़ों का बहुत सुंदर सजीव चित्रण करते मनमोहक चोका। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर
सैनिकों की देशभक्ति को दर्शाते बहुत सुंदर भावपूर्ण ताँका। हार्दिक बधाई विभा रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत ही सुन्दर हाइबन और बेहतरीन ताँका रचने के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आभार ।
सकारात्मक संदेश देता सुंदर हाइबन।
पहाड़ों का मनमोहक चित्रण।
सुंदर ताँका।
आदरणीया रत्नाकर दीदी, विभा रश्मि जी को एवं आदरणीय भीकम सिंह जी को बहुत बहुत बधाई।
सादर
सुदर्शन रत्नाकर जी ,भीकम सिंह जी रश्मि विभा जी आपकी अमूल्य टिप्पणियों ने मन में प्रसन्नता भर दी । आभार सभी मित्रों का ।
हाइबन और हाइकु के लिये दिली बधाई ।
भीकम सिंह जी के , पहाड़ों के नैसर्गिक सौन्दर्य का बखान करते हुए सुन्दर चौका । हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी को ।
मेरी ताँका रचनाओं को स्थान देने के लिये
संपादक द्वय को तहेदिल से शुक्रिया ।
आप सभी की रचनाएँ उत्तम श्रेणी की है। नये-नये विषयों पर उत्तम रचनाएँ पढ़ने को मिल रही है।
पहाड़ों का सौंदर्य वर्णन मनमोहक है.... 🙏🌹🌹 देशभक्ति का संदेश भी दे रहें.... वाह्ह्ह आद.भीकम सर जी अत्यंत उत्कृष्ट सृजन 🙏
🙏
आद. सुदर्शन रत्नाकर जी... आपका उत्तम विचार अवश्य सभी पाठकों तक पहुँचे 🙏🌹
आद. विभा रश्मि जी अतिसुंदर सृजन... देशभक्ति के शब्द सर्वदा हृदय को स्पर्श करते हैं 🙏🌹
कपिल जी , अनिमा दास जी सकारात्मक टिप्पणी के लिये दिली आभार । आपके शब्दों ने सृजन ऊर्जा बढ़ा । आभार ।
प्यारे से हाइबन, तांका और चोका के लिए आप सभी को बहुत बधाई
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