1-छलना
प्रियंका गुप्ता
कभी कभी ऐसा क्यों
होता है कि हम बहुत अच्छे से जानते-बूझते हुए भी कि कोई रिश्ता हमें छले जा रहा है, उसे निभाते जाते हैं ?
इसके पीछे क्या भावना
काम करती है? उस रिश्ते के प्रति हमारा प्यार, समर्पण, मोह, वफादारी होती है?
या दुनिया और समाज का भय, रिश्तों की मर्यादा
आदि होते हैं या फिर यूँ ठगे जाने को ही हम अपनी नियति
मान कर चुप रह जाते हैं ?
कई बार हमें छलने
वाला हमारी चुप्पी से ये समझ लेता है कि हम उसकी छलना से नावाकिफ़ हैं और वो पूरी
दिलेरी से छल किए चला जाता है और गाहे-बगाहे विरोध दर्ज़ होने पर
हमारे आगे अपनी नकली सच्चाई का चूरन फेंक देता है।
वैसे तो चूरन से
हाजमा दुरुस्त होता है, पर धोखेबाजी
के ऐसे चूरन से किसी की बेवफ़ाई को चुपचाप हज़म कर जाना कहाँ की बुद्धिमानी है?
छल करना
कभी जाना ही नहीं
आदत तेरी |
-0-
2-अहम
-सुदर्शन
रत्नाकर
उन दोनों के बीच थी, तो केवल खामोशी जो पहले कभी हुई ही नहीं। जैसे किसी ने उफनते दूध में पानी के छींटे
मार दिए हों। क्या ये छींटे पहले नहीं पड़ सकते थे या उफान आने से पहले ही अहम की आँच
धीमी हो जाती। नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं हुआ और
रिश्ते ऐसे चटके कि दरारें पड़ते -पड़ते खाई बन गई। वो तो बननी ही थी। जब दो अहम टकराते
हैं, तो ख़ालीपन अपने आप बन जाता है। ऐसा होता ही है। और उन दोनों के बीच भी तो कुछ
ऐसा ही हुआ था । नई बात तो थी नहीं। पर कोई
बात तो अलग थी। सब कुछ तो ठीक था, ठीक चल रहा था। दोनों ने एक दूसरे से अथाह प्रेम
किया था ,डूबकर किया था। एक दूसरे की भावनाओं
को समझा भी था। फिर नासमझी बीच में कहाँ से आ गई। नासमझी ही तो थी जो सम्बन्धों में
अहम को आने दिया और नाव में छेद से पानी की
तरह वह अंदर आता गया और उसने दोनों की गृहस्थी की नाव को ही डुबो दिया।
पेड़ -पौधों की परवाह न करो तो खर- पतवार उग आते हैं और पौधों
का अस्तित्व ही नहीं रहता । उनके जीवन में भी अहम ऐसा घुसा कि दोनों के बीच पनपे प्रेम
सम्बन्धों का अस्तित्व ही विलीन हो गया।
ऐसा
तो नहीं है कि खर- पतवार निकाले ही नहीं जा सकते । पौधों को पनपने देने के लिए उन्हें कोशिश करके निकाला ही तो जाता है। दोनों एक दूसरे
के आपने -सामने बैठे यही सोच रहे थे। सोचना
,सही भी था । सम्बंधों को भी पनपने और उनके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अपने -अपने अहम को
दिल से निकालना होता है । टूटना या तोड़ना नहीं, जुड़ना ही जीवन है।
टकराते
हैं
तोड़ते
हैं बंधन
झूठे
अहम।
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-सुदर्शन
रत्नाकर
ई-29,नेहरू
ग्राउंड ,फ़रीदाबाद 121001
--0-
13 टिप्पणियां:
छलना और अहम बेहतरीन हाइबन, दोनों रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
दोनों हाइबन जीवन के सत्य को दरसा रहे हैं। उत्तम सर्जन के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई।
शानदार -- विभय कुमार
सम्बंधों के मध्य पनपने वाले स्वार्थ और अहंकार को विवेचित करते सुंदर हाइबन।दोनो को हार्दिक बधाई।
भीकम सिंह जी, जेन्नी जी आपका हार्दिक आभार। प्रियंका जी बहुत सुंदर हाइबन के लिए बधाई।
दोनों हाइबन उत्कृष्ट।
आदरणीया सुदर्शन रत्नाकर दीदी और प्रियंका दीदी को हार्दिक बधाई
सादर
छलना और अहम हमारे आस पास के ही दृश्य मन से गुज़र गए। बधाई बेहतरीन रचने की।
दोनों हाइबन सत्य का उद्घाटन करते हुए सुंदर बन पड़े हैं।रचनाकार द्वय को बहुत-बहुत बधाई।
प्रियंका जी और सुदर्शन दी ने सुंदर हाइबन के माध्यम से बड़े गम्भीर और विचारणीय मुद्दों को उठाया। बहुत बहुत बधाई आप दोनों को।
दोनों हाइबन बेहतरीन...प्रियंका जी और आदरणीया सुदर्शन दी को बहुत-बहुत बधाई।
छलना और अहम दोनों हाइबन बहुत भावपूर्ण । प्रियंका जी और सुदर्शन जी को दिली बधाई
Vibha Rashmi
आप सभी की प्यारी टिप्पणियों के लिए बहुत आभार
आदरणीय सुदर्शन जी का हाइबन भी बहुत बेहतरीन है, उनको मेरी बधाई
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