डॉ• भावना कुँअर
1- बरसों बाद
बरसों बाद
मेरे मन आँगन
महका प्यार
झूम उठा आसमाँ
खिला संसार।
मन की कलियाँ भी
खिलने लगी
चेहरे पे रंगत
दिखने लगी
कोयल की आवाज़
वर्षा की धुन
भौंरे की गुन-गुन
हवा के गीत
झरनों का संगीत
चाँद का आना
सूरज का छिपना
नदी का शोर
खिलखिलाती भोर
अँधेरी रात
तारों के संग बात
जुगनुओं का
ऐसे टिमटिमाना
तितली संग
दूर देश में जाना
गाई धुन को
फिर गुनगुनाना
लिखी डायरी
बार-बार छिपाना
उठती पींगे
सावन के भी गीत
खुशबुओं का
मदहोश करना
सब भाने लगा है।
-0-
2- ये दुखी सलवटें
हवा पे पड़ी
ये दुखी सलवटें
न जाने किस
सोच में डूबी जाएँ
कड़क धूप
नरमाई से पूछे
उसकी इस
उदासी का सबब
चहचहाते
पेड़ों पर झूलते
रंग-बिरंगे
पंछियों के समूह
करें प्रयास
सोच की गलियों से
लौटा लाने का
पानी संग खेलती,
लहरें करें
सवाल पे सवाल
तितली लाई
रंगीन छतरियाँ
फूलों ने खोली
इत्र भरी शीशियाँ
भौंरे सुनाते
नयी पुरानी धुन
पत्तों ने खोली
अपनी हथेलियाँ
हाल पूछतीं
पेड़ों की परछाई
पर जवाब
कुछ न मिल पाए
क्या करे कोई
समझ में न आए
ऐसी गहरी
कौन सी चोट खाई
होठों पे चुप्पी छाई।
-0-
9 टिप्पणियां:
पत्तों ने खोली
अपनी हथेलियाँ
हाल पूछतीं
पेड़ों की परछाई
Bahut sundar rachna... ye panktiyan to bas adbhut hi hain...
तितली लाई
रंगीन छतरियाँ
फूलों ने खोली
इत्र भरी शीशियाँ
भौंरे सुनाते
नयी पुरानी धुन
पत्तों ने खोली
अपनी हथेलियाँ
बहुत प्यारी पंक्तियाँ।
दोनों रचनाएं बहुत सुन्दर। भावना जी बधाई।
उठती पींगे सावन के भी गीत खुशबुओं का मदहोश करना सब भाने लगा है। kamal ki soch कुछ न मिल पाए क्या करे कोई समझ में न आए ऐसी गहरी कौन सी चोट खाई होठों पे चुप्पी छाई। uf ye choka sunder likha hai aapne badhai rachana on बरसों बाद / ये दुखी सलवटें
भावना जी ने कोमल भावनाओं को बहुत ही सुंदरता से अभिव्यक्त किया है .....दोनों चोका लाजवाब ...
गाई धुन को
फिर गुनगुनाना
लिखी डायरी
बार-बार छिपाना
उठती पींगे
सावन के भी गीत
खुशबुओं का
मदहोश करना
सब भाने लगा है।...और ..गहरी चोट ...क्या कहने ..!!
दोनों चोका बहुत ही सुंदर किंतु पहले के प्रवाह और अति सुंदर भाव पक्ष ने मन मोह लिया !
वाह डॉ• भावना कुँअर जी !
aap sabka itna sneh mila uski bahut aabhaari hun,jis gahrai se maine likha aap sbne usko utni hi gahari se padha mera to ye jeevan sfal ho gaya...punaa aap sabka dil se aabhaar...
दोनों चोका में मन के दो प्रबल भाव... प्रेम और व्यथा. दोनों ही बहुत उम्दा है, बधाई.
मन के एहसासों को छू लेने वाली रचना
बहुत गहरे तक मन को छू जाती हैं ये पंक्तियाँ...। इन भावों में पाठक स्वतः बह जाता है...बहुत खूबसूरत...बधाई...।
प्रियंका
एक टिप्पणी भेजें