1-मावस भोली
[ आज सोमवती अमावस्या पर विशेष]
डॉ सुधा गुप्ता
मावस भोली
स्याह काली रात की
बुक्कल मार
ख़ुद का रूप दिया
बुझाके दीया
खोजती फिरे पिया
कैसी बावरी !
चढ़ी ऊँची अटारी
उचक ढूँढ़े
कहाँ छिपे प्रीतम ?
न दे दिखाई
निराश हो -होकर
आँसू ढलका
चुनरी भर डाली
जगमगाते
वे बनके सितारे
रो-रो पुकारे-
कहां छिपे हो सोम ?
बड़ा निठुर
छकाता रहे चाँद
पास न आए
सारी रात जगाए
एक पल को
झलक न दिखाए
चाँद-दीवानी
कभी चैन न पाए
देखो तो रीत:
जग की चतुराई
बूझी न जाए
सोम की विरहिणी
‘सोमवती’ कहाए ।
-0-
2-परीक्षा भवन में
-कमला निखुर्पा
नन्हा -सा हाथ
थामे छोटी कलम
मचल उठा
परीक्षा भवन में
आँखें चमकी
सवालों को पढ़के
होंठों पे हँसी
सरपट जो दौड़ी
नन्हीं कलम
कागजी मैदान पे
बनते गए
क़दमों के निशान
खिला मैदान
खिले शब्दों के फूल
गूँथे कलम
भोले भावों की माला
महका मन -
‘पहनूँ इतराऊँ
-0-
7 टिप्पणियां:
डॉ सुधा गुप्ता जी ने सोमवती अमावस्या का मनोहारी मानवीकरण किया है जिससे चोका बहुत ही जीवंत और खूबसूरत बन गया है।
बधाई !
कमला निखूर्पा जी को भी सुंदर चोका के लिए बधाई !
Gahan,gambheer soch dono hi rachnaon men bahut 2 badhai..
Adarniye Sudha Gupta ji ka Bhavpurn Choka ek kahani kehta sa Somwati Amaawas par... Badhaaee!
Kamlaji bahut pyara Choka ...apko bhi Badhaee!
Dr. Saraswati Mathur
दोनो रचनाएं बहुत सुन्दर। सुधा जी कमला जी बहुत बधाई।
देखो तो रीत:
जग की चतुराई
बूझी न जाए
सोम की विरहिणी
‘सोमवती’ कहाए ।
ऐसे विषय पर सुधा जी ही शायद लिख सकती है .उनके पास शब्दों का भंडार है और भावों का सागर है .आपकी लेखनी पर सदा की तरह पुनः नतमस्तक हूँ
सादर
रचना
क़दमों के निशान
खिला मैदान
खिले शब्दों के फूल
गूँथे कलम
भोले भावों की माला
महका मन -
‘पहनूँ इतराऊँ
खुशबू बिखराऊँ ।’
वह क्या भाव है वैसे विषय खोजने में आप भी बहुत माहिर हैं
बधाई
रचना
बहुत खूबसूरत और मनभावन चोका है...। आप दोनो को हार्दिक बधाई...।
सोम की विरहिणी
‘सोमवती’ कहाए ।...बहुत ही प्रभावी ....अद्भुत भाव लिए चोका ..धन्यवाद दीदी
खिले शब्दों के फूल
गूँथे कलम
भोले भावों की माला .....अति सुंदर ...यूँ ही सजें सुंदर मालाएँ..बहुत बधाई !
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