सुशीला शिवराण
रजनी बाला
उतरी अम्बर से
नहा चाँदनी
ओढ़ तारा- चूनर
मिलने प्रीतम से ।
2
पाओ तो मन
नभ जैसा विस्तार
प्यारे सपने
देखे जो नयनों ने
कर लूँ मैं साकार ।
स्याह हुआ अम्बर
कौंधी दामिनी
चीर कालिमा देखो
हँस गई चाँदनी ।
4
नीला आसमाँ
बुलाए जब मोहे
मन बावरा
बन जाए है पाखी
नापे नभ- विस्तार
4
नीला आसमाँ
बुलाए जब मोहे
मन बावरा
बन जाए है पाखी
नापे नभ- विस्तार
-0-
-
11 टिप्पणियां:
सुशीला जी ने प्रकृति की खूबसूरती को बिम्ब बनाते हुये बहुत सुंदर तांका रचे हैं..
नहा चाँदनी
ओढ़ तारा- चूनर
मिलने प्रीतम से ....सारे तांका खूबसूरती से रचे गए हैं....बधाई
कारे बादर
स्याह हुआ अम्बर
कौंधी दामिनी
चीर कालिमा देखो
हँस गई चाँदनी ।
बहुत सुन्दर।
कृष्णा वर्मा
नीला आसमाँ
बुलाए जब मोहे
मन बावरा
बन जाए है पाखी
नापे नभ- विस्तार...
Khubsurat...
बहुत सुंदर तांका हैं बधाई,
अमिता कौंडल
बेहद खूबसूरत प्रकृति वर्णन...बधाई!!
प्रकृति की अद्भुत छटा बिखरी है..
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!
नए रचनाकारों की विषयवस्तु और शिल्प दोनों क्षेत्रों रचनातमक सम्भावनाएँ आश्वस्त करती हैं । सुशीला शिवराण जी के ताँका पहली बार पढ़े ।सभी ताँका परिपक्व होने के साथ कल्पना -माधुर्य से सजे हैं । ये दो ताँका बहुत ही अच्छे हैं- 1
रजनी बाला
उतरी अम्बर से
नहा चाँदनी
ओढ़ तारा- चूनर
मिलने प्रीतम से ।
2
पाओ तो मन
नभ जैसा विस्तार
प्यारे सपने
देखे जो नयनों ने
कर लूँ मैं साकार ।
आप सभी की ह्रदय से आभारी हूँ। आप की टिप्पणियाँ निरंतर बेहतर और सुंदर लिखने को प्रेरित करती हैं। ये स्नेह बनाए रखें।
कारे बादर
स्याह हुआ अम्बर
कौंधी दामिनी
चीर कालिमा देखो
हँस गई चाँदनी ।....
बहुत सुंदर तांका हैं सुशीला शिवराण जी बधाई!
एक टिप्पणी भेजें