तुहिना रंजन
1
कुछ असीम
कुछ सीमा तक था
प्रेम बरसा
बादल थमा रहा
भीगा -सा तरसा- सा
2
बाँध तोड़ चुकी थी
तट तड़पा
बाहों में भरने को
मिलन मधुर था ?
3
अनसुलझी
अजब पहेली -सी
उसकी आँखें
कुछ कहना चाहें
झिझकें, झुक जाएँ ।
4
दिल का कोना
कैसे वो दिखलाएँ
जहाँ छुपा है
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का ।
5
देखा तुमने?
सिसकियाँ दबातीं
आह छुपातीं
फिर भी भर आतीं
उसकी वो दो आँखें ।
-0-
9 टिप्पणियां:
बहुत कहाऊब्सुरत तांका
बहुत ही खूबसूरत तांका! पढ़कर आनंद आ गया! बधाई तुहिना रंजन जी !
बेहद भावपूर्ण, शुभकामनाएँ.
दिल का कोना
कैसे वो दिखलाए
जहाँ छुपा है
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का।
बहुत खूब।
सभी ताँका बहुत सुन्दर भाव...बधाई हो।
कृष्णा वर्मा
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
सुंदर तांका.... वाह!
सादर
सभी तांका एक से बढ़कर एक हैं बहुत भावपूर्ण
दिल का कोना
कैसे वो दिखलाएँ
जहाँ छुपा है
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का ।
bahut bhavon bhara sunder tanka
badhai
rachana
दिल का कोना
कैसे वो दिखलाए
जहाँ छुपा है
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का।
देखा तुमने?
सिसकियाँ दबातीं
आह छुपातीं
फिर भी भर आतीं
उसकी वो दो आँखें ।
बहुत खूब...बधाई...|
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